नई दिल्‍लीः दिल्‍ली पब्‍लिक लाइब्रेरी तथा गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के संयुक्त तत्त्वावधान में डॉ बीएन पांडे सभागार में 'गांधी अहिंसा: पुस्‍तकालयाध्‍यक्षों के लिए महत्त्व' एवं 'आज के पुस्‍तकालय में सूचना साक्षरता का महत्त्व' विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. उद्घाटन सत्र की अध्‍यक्षता करते हुए लाइब्रेरी बोर्ड के अध्‍यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ ने कहा कि पुस्‍तकालय पाठकों को ज्ञान प्रेषित करता है और हमारे व्‍यक्‍तित्‍व का निर्माण करता है. सामाजिक मूल्‍यों के विकास पर जोर देते हुए डॉ. गौड़ ने कहा कि इस दिशा में शिक्षक, पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष और व्‍याख्‍यानकर्ताओं की जिम्‍मेदारी बढ़ गई है. संगोष्‍ठी के प्रारंभ में गांधी स्‍मृति एवं दर्शन समिति के निदेशक दीपंकर श्री ज्ञान ने पुस्‍तकालयों में सीमित पाठकों का मुद्दा उठाया और कहा कि पाठकों की संख्‍या निरंतर बढ़ती रहे, इस ओर गंभीरता से प्रयास होना चाहिए. उन्‍होंने कहा कि सिविल सेवा परीक्षा में गांधी विचार समाहित किए गए हैं, इसलिए छात्रों को गांधी साहित्‍य का अध्‍ययन करना चाहिए. सार-संबोधन प्रस्‍तुत करते हुए डेवलपिंग लाइब्रेरी नेटवर्क, दिल्‍ली के निदेशक डॉ. एच. के. कौल ने कहा कि पुस्‍तकालय बंद हो रहे हैं. इसलिए यह जरूरी है कि पुस्‍तकालय आकर्षण का केंद्र बने और इसका आधुनिकीकरण हो.
मुख्‍य अतिथि के रूप में संस्‍कृति मंत्रालय के निदेशक राजेश कुमार सिंह ने कहा कि समाज के अंतिम व्‍यक्‍ति तक पुस्‍तक की पहुंच हो, इस दिशा में पुस्‍तकालय पहल करें. मुख्‍य वक्‍ता के तौर पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान दिल्‍ली के पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष डॉ. नबी हसन ने कहा कि महात्‍मा गांधी यह मानते थे कि पुस्‍तकालय जीवन का अभिन्‍न भाग हैं और अच्‍छा साहित्‍य लोगों तक पहुंचना चाहिए. रेलवे बोर्ड के पूर्व संयुक्‍त सचिव प्रेम पाल शर्मा ने कहा कि ज्ञान की तरफ जाना चाहते हैं तो पुस्‍तकालय से बेहतर कुछ भी नहीं है. उद्घाटन सत्र का संचालन गांधी स्‍मृति एवं दर्शन समिति के राजदीप पाठक ने किया. प्रथम सत्र का विषय था 'पुस्‍तकालयों के लिए अहिंसा संप्रेषण'. इस सत्र के वक्‍ता वेद व्‍यास कुंडु थे. सत्र की अध्‍यक्षता डॉ. विनोद बब्‍बर ने की. द्वितीय सत्र का विषय था 'आज के पुस्‍तकालयों में सूचना ज्ञान का महत्त्व'. इस सत्र की वक्‍ता डॉ. बबीता गौड़ थी. अध्‍यक्षता दिल्‍ली पब्‍लिक लाइब्रेरी के महानिदेशक डॉ. लोकेश शर्मा ने की. कार्यक्रम के अंत में श्रोताओं की जिज्ञासा का समाधान वाद-संवाद से किया गया.