ऊनाः अखिल भारतीय साहित्य परिषद ऊना के तत्वावधान में भारतीय सांस्कृतिक परंपरा व मूल्यों को समर्पित कवि सम्मेलन का आयोजन राजकीय महाविद्यालय ऊना में हुआ, जिसकी अध्यक्षता डॉ जयसिंह आर्य नई दिल्ली ने की. मुख्य अतिथि थे वन मंडलाधिकारी मृत्युंजय माधव और विशिष्ट अतिथि थे वन अधिकारी राहुल शर्मा. कवि सम्मेलन का शुभारंभ मां शारदे की वंदना से कवि डॉ सुभाष शर्मा ने किया. उन्होंने राजसिंह राज के साथ कार्यक्रम का संचालन भी किया. इस अवसर पर साहित्य परिषद की प्रदेशाध्यक्ष डॉ रीता सिंह ने हिमाचली परम्परानुसार अध्यक्ष व अतिथियों का अभिनंदन हिमाचली टोपी, शाल, प्रतीक चिन्ह व पुष्प गुच्छ भेंट कर किया. कवि सम्मेलन में नाहन, बिलासपुर, चंबा, कुल्लू, कांगड़ा व पोन्टा साहिब  वह ऊना से पधारे पच्चीस कवियों ने काव्य पाठ किया.
अंत में अध्यक्ष डॉ जय सिंह आर्य ने देश, समाज, प्राकृतिक संपदा, परिवार पर गाए अपने गीतों से वातावरण को झूमने को विवश कर दिया. उन्होंने जब पिता शीर्षक से अपनी रचना पढ़ी तो श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट उनका स्वागत किया. बानगी देखें-
          मेरे मन  का  गांव पिता जी
          हैं बरगद की छांव पिता जी
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           चलकर आये सुसतालो कुछ
           आओ दबा दूं पांव पिता जी

बेटियों पर सुनाये उनके इस गीत ने वातावरण को भावविभोर कर दिया. गीत के बोल थे-

         ओढ़कर जब मैं धानी चूनर जाऊंगी
         सूना-सूना सा घर मां का कर जाऊंगी
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          बस चिरैया समझ लेना बाबुल मेरे
          मैं इधर की नहीं हूं उधर जाऊंगी

इस अवसर पर डॉ रीता सिंह ने साहित्य परिषद के लक्ष्य, उद्देश्य वह संविधान की चर्चा की तथा सभी से आग्रह किया कि हमारे साहित्य की  परम्परा, जो वैदिक काल से चली आ रही है, हमें उसका पोषण करना है. डॉ रीता सिंह द्धारा गाये परिषद गीत से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ तथा जन-गण-मन से कवि सम्मेलन का समापन हुआ. कार्यक्रम को दिशा प्रदान करने के लिए अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संगठन मंत्री श्रीधर पराडकर का शुभाशीष भी कार्यक्रम को मिला. उन्हीं की प्ररेणा से कार्यक्रम भव्य रूप ले सका. कवि सम्मेलन की अभूतपूर्व सफलता पर ऊना साहित्य परिषद की अध्यक्ष पूर्व प्रधानाचार्य इंदु पराशर ने राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ जयसिंह आर्य व सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया.