कोलकाता: “भारत क्या है? हमारी संस्कृति इसको परिभाषित करती है… हमारी संस्कृति का मूल सिद्धांत था अभिव्यक्ति, उसका मूल सिद्धांत था वाद-विवाद. हमारी संस्कृति का सबसे बड़ा अलंकरण था – अनंतवाद. दूसरे की बात सुनो, दूसरे की बात समझो, इतने अहंकार में मत आओ कि यह सोच लो कि मेरे अलावा दूसरा सही कैसे हो सकता है? यही ज्ञान, जिस महापुरुष के लिए कार्य किया जा रहा है, उन्होंने दिया. हमें याद रखना होगा.” उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह बात में गौड़ीय मिशन के संस्थापक आचार्य श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद की 150 वे आगमन उत्सव के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने कहा कि थोड़ा सा अपने अतीत में देखें, तो रामायण का क्या सिद्धांत है? अधर्म पर धर्म की विजय. कितनी विपरीत परिस्थितियां हों, मर्यादित आचरण रहा है. मर्यादा को कभी नहीं लांघा गया, और धर्म की जीत हुई. उन्होंने कहा, “हर बात का जवाब आज के दिन सनातन में मिल सकता है. सनातन जो सिखाता है वह आज की व्यवस्था के लिए आवश्यक है, चाहे वह दुनिया में कहीं भी हो. सनातन का तात्पर्य समावेशिता से है, सनातन का तात्पर्य सार्वभौमिक अच्छाई से है, सनातन का तात्पर्य आत्मा की सर्वोच्चता से है. सनातन अधीनता में विश्वास नहीं करता. यदि आप सनातन के प्रति समर्पण करते हैं, तो आप बंदी नहीं हैं, आप एक स्वतंत्र व्यक्ति, एक स्वतंत्र आत्मा बन जाते हैं.”
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “धर्म को संकीर्ण व रूढ़िवादी तरीके से नहीं देखा जा सकता. धर्म का आकलन संकीर्ण दायरे में नहीं किया जा सकता. हमें धर्म के सही अर्थ को समझना होगा और तभी हमें अंदाजा होगा कि हम सभी को कृतसंकल्प होकर भारत को फिर से ‘विश्व गुरु’ बनाना है. और भारत का विश्व गुरु बनना दुनिया के लिए सबसे बड़ा शुभ संदेश है.” धनखड़ ने कहा, “हमारी संस्कृति में, हमने क्रूरता, आक्रमण और बर्बरता को सहन किया है… हमारे धार्मिक स्थानों, हमारे सांस्कृतिक प्रतीकों का किस तरह की बर्बरता, उग्रता और लापरवाही से विनाश हुआ! जब नालन्दा में आग लगाई गई तो अंदाजा लगाइए कि क्या-क्या नष्ट हुआ! नालन्दा में कितनी मंजिलें थीं, कितनी लाख किताबें थीं और वह सिर्फ भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए थीं. आज तकनीक की प्रगति का हमारे ज्ञान के भंडार में संग्रहीत ज्ञान से कोई न कोई संबंध है. उन्होंने कहा कि यह श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भूमि है, जिन्होंने राष्ट्रवाद से कभी समझौता नहीं किया. और यह कितना बड़ा बलिदान था! आज हम सौभाग्यशाली समय में हैं कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जो चिंताएं थीं, उनके विचार थे, राष्ट्रवाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धता थी और जो नासूर उन्हें नजर आया था, वह अब हमारे संविधान में मौजूद नहीं है.” धनखड़ ने कहा, “आज, हमें अपने बच्चों को हमारी संस्कृति का बोध कराने की आवश्यकता है. यह एक सकारात्मक संकेत है कि इस दिशा में कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, लेकिन किसी भी देश के लिए अगर कोई सबसे बड़ा अलंकरण है, तो वह उसकी संपत्ति नहीं, बल्कि उसकी संस्कृति है. एक बार संस्कृति छिन्न-भिन्न हो गई तो गिरावट को रोका नहीं जा सकता. सांस्कृतिक पहलुओं और संस्कृति से संबंधित सभी तत्वों का संरक्षण, पोषण और सुरक्षा महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे भारत को परिभाषित करते हैं.