मेरठ: चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में साहित्य के प्रचार-प्रसार में उर्दू अखबारों का हिस्सा‘ विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में बोलते हुए बांग्लादेश की ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गुलाम अली रब्बानी ने कहा कि उर्दू अखबारों ने भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इस तथ्य को जनता के सामने लाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के विभिन्न उर्दू अखबारों और पत्रिकाओं जैसे अल-मशरिक, जादू, अदब और शाहकार ने उर्दू साहित्य को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण सेवाएं दी हैं. किसी सेमिनार की सफलता यह है कि उसमें से कुछ न कुछ निकले और मैंने प्रो असलम जमशेदपुरी की सलाह से निर्णय लिया है कि जल्द ही बांग्लादेश से ‘खुदी‘ नामक पत्रिका प्रकाशित करूं. मैं इसे यथासंभव पूरा करने का प्रयास करूंगा. सेमिनार के उद्घाटन कार्यक्रम की अध्यक्षता उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो असलम जमशेद पुरी ने की. उर्दू के जानकार अब्दुल माजिद निज़ामी मुख्य अतिथि थे जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में जाविद नूर शामिल हुए. प्राध्यापक डा शादाब अलीम ने संचालन और धन्यवाद डा आसिफ अली ने किया. प्रो जमशेदपुरी ने स्वागत वक्तव्य दिया और सेमिनार के लक्ष्य और उद्देश्यों पर प्रकाश डाला. कार्यक्रम का शुभारंभ एमए द्वितीय वर्ष के छात्र मुहम्मद तलहा द्वारा पवित्र कुरान की तिलावत और नुजहत अख्तर द्वारा पेश की गई नात से हुआ. इस अवसर पर आलोचक एवं ‘साहित्य आंदोलन‘ बनारस के संपादक डा जय वेदनूर ने कहा कि एक समय ऐसा भी था कि साहित्य और पत्रकारिता अविभाज्य थे और समाचार पत्रों में साहित्य के प्रकाशन के लिए कोई दिन निश्चित नहीं था. इस सेमिनार ने जहां पुराने इतिहास के उज्ज्वल अध्याय पर चर्चा के साथ ही उसे वर्तमान समय में कैसे क्रियान्वित किया जाए, इस पर सुझाव दिए गए.
मुख्य अतिथि अब्दुल माजिद निज़ामी ने विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग की स्थापना के 20 वर्ष पूरे होने पर बधाई देते हुए कहा कि साहित्य और पत्रकारिता का फूल और खुशबू जैसा रिश्ता है. उर्दू पत्रकारिता एक आंदोलन के रूप में शुरू हुई और उर्दू पत्रकारिता आज भी जीवित है. लेकिन उर्दू पत्रकारिता को मजबूत होना है तो भाषा को भी बढ़ावा देना चाहिए. जब तक इस पत्रकारिता की भाषा शीर्ष पर नहीं होगी तब तक कोई भी पत्रकारिता ऊपर नहीं उठ सकती. इस अवसर पर लेखक एवं कवि आरिफ नकवी के नये प्रयास ‘कांटे और फूल‘ का विमोचन भी हुआ. शाम को मुहम्मद रफी की 100वीं जयंती पर तानसेन वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा ‘एक शाम रफी के नाम‘ का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न कलाकारों ने मुहम्मद रफी द्वारा गाए गए सदाबहार गीतों को आवाज देकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. इस अवसर पर डा अलका वशिष्ठ, डा शाबस्तान आस मुहम्मद, इंजीनियर रिफत जमाली, शकील सैफी, हाजी आदिल चौधरी, जावेद राव, ठाकुर शमशेर सिंह, पंकज जॉली, डा पूनम कुमार, अजीत कुमार, मुफ्ती नईम, ब्रजबाला सागवान, संजय कुमार गुप्ता, अफाक खान, जीशान खान, सैयदा मरियम इलाही, शाहनाज, परवीन, उज्मा सहर, फरहत अख्तर, नुजहत अख्तर, माहे आलम, मुहम्मद शमशाद, मुहम्मद इमरान, इरफान आरिफ, शाहे जमन सहित शहर के गणमान्य व्यक्तियों और बड़ी संख्या में छात्र एवं छात्राओं ने भाग लिया.