नई दिल्ली: स्थानीय गांधी शांति प्रतिष्ठान में प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी जी के तीन कहानी संग्रहों का विमोचन हुआ. स्त्री दर्पण द्वारा शिवपूजन सहाय की 63वीं पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह में सात दशक बाद फिर से प्रकाशित कहानी संग्रह ‘नारी हृदय ‘और’ ‘कौमुदी और उनकी असंकलित कहानियों के संग्रह ‘पगली’ का प्रकाशन हुआ है. समारोह को अशोक वाजपेयी, हरीश त्रिवेदी, रोहिणी अग्रवाल, अनामिका, नीला प्रसाद और शिवपूजन सहाय के नाती विजय नारायण ने भी संबोधित किया. वाजपेयी ने कहा कि आज लेखकों को अपने समय का सच कहने की जरूरत है. शिवरानी देवी अपने समय से आगे की लेखिका थीं और उनकी कहानियों में निजता के साथ-साथ राजनीतिक दृष्टि भी है. आज की स्त्री लेखिकाओं में वह दृष्टि नहीं दिखाई पड़ती जो शिवरानी के पास थीं. उन्होंने कहा कि शिवरानी की कहानी समझौता दो पात्रों के संवाद की अनूठी कहानी है. वैसी कहानी हिंदी में मुझे दिखाई नहीं देती. प्रेमचंद की जीवनी ‘कलम का सिपाही’ का अंग्रेजी अनुवाद करने वाले त्रिवेदी ने कहा कि उन्हें शिवरानी से मिलने के अनेक अवसर मिले, लेकिन जब भी वे मिली वह बहुत शांत स्वभाव की महिला थीं किसी से घर में बात भी नहीं करती थीं. अपने पुत्रों श्रीपत राय और अमृत राय  से भी नहीं. मुझे यह देखकर आश्चर्य भी हुआ कि इसी शिवरानी ने अपने जमाने में ‘साहस’ जैसी साहसिक कहानी लिखी जिसमें बेमेल विवाह का तीखा विरोध करते हुए लड़की ने वर को ही जूते से मंडप में पीट दिया. त्रिवेदी ने कहा कि प्रेमचंद और शिवरानी देवी में तुलना करने या शिवरानी को बढ़चढ़कर बताने की भी जरूरत नहीं है.

समारोह में अनामिका ने कहा के कि शिवरानी देवी का लेखन इसलिए खास है कि उन्होंने स्त्रियों की आंखें साफ करने का काम किया. अगर किसी को ध्यान से देख लो तो उससे नफरत करते नहीं बनता है. प्रेमचंद की ‘बूढ़ी काकी’ कहानी में समय, वातावरण का चित्रण बहुत सुंदर हुआ है. वहीं शिवरानी देवी की ‘बूढ़ी काकी’ कहानी में लेखिका अंदर की ओर लौटी है और इससे उन्होंने जो संवेदनात्मक चित्रण किया है, वह बहुत सुंदर हुआ है. रोहिणी अग्रवाल ने कहा कि आज हमें शिवरानी देवी को केवल याद करने की नहीं बल्कि उनकी तरह योद्धा स्त्री बनकर समाज में स्त्रियों के अधिकार के लिए लड़ने की जरूरत है. नीला प्रसाद ने ‘साहस’ कहानी का विश्लेषण करते हुए लेखिका के साहस की चर्चा की एवं कहा कि 1924 में एक स्त्री द्वारा बेमेल विवाह का विरोध करते हुए वर को जूते से मंडप में मारना कितनी बड़ी घटना थी क्योंकि आज भी कोई लड़की यह साहस नहीं कर पाती है. विजय नारायण ने अपने नाना शिवपूजन सहाय का प्रेमचंद तथा शिवरानी के साथ आत्मीय संबंधों का जिक्र करते हुए उस दौर को याद किया जब बनारस में प्रेमचंद के साथ  लेखकों का जुटान होता था. समारोह में श्री नारायण के पिता एवं स्वतंत्रता सेनानी रंगकर्मी बीरेंद्र नारायण की अंग्रेजी में थिएटर पर लिखी पुस्तक के आवरण का भी लोकार्पण किया गया. दिव्या जोशी ने कल्पना मनोरमा की किताब की महेश दर्पण द्वारा की गई समीक्षा का पाठ किया. मीनाक्षी प्रसाद ने शिवरानी को काव्यांजलि पेश की और एक उनकी स्मृति में एक गीत भी गाया. संचालन कल्पना मनोरमा और विशाल पांडेय ने किया.

समारोह में रश्मि वाजपेयी, नासिरा शर्मा, रेखा अवस्थी, गिरधर राठी, विभा सिंह चौहान अनिल अनलहातु, जयश्री पुरवार, मीना झा, वाजदा खान, अतुल सिन्हा, जितेंद्र श्रीवास्तव, ज्योतिष जोशी, अशोक कुमार, विभा बिष्ट, श्याम सुशील, मनोज मोहन, रश्मि भारद्वाज, अशोक गुप्ता, प्रसून लतान्त, शुभा द्विवेदी आदि उपस्थित थे.