रायपुर: कहता है क्या जमाना मुझको फिकर नहीं है, अपनी हदें हैं मालूम गिरने का डर नहीं है, सच के बोल टिकते हैं चाहे लाख तूफां आए, ओढ़ूं फरेबी चूनर मुझमें हुनर नहीं है… ये काव्य पंक्तियां ममता खरे ‘मधु‘ की हैं, जो स्थानीय सिविल लाइन के वृंदावन सभागार में ‘साहित्य सृजन संस्थान‘ के तत्वावधान में आयोजित कवि सम्मेलन एवं सम्मान कार्यक्रम में शिरकत कर रही थीं. आयोजन के मुख्य अतिथि थे नीलमचंद सांखला तो अध्यक्षता संस्थान के अध्यक्ष व सेवानिवृत्त प्रधान सत्र न्यायाधीश वीर अजीत शर्मा ने की. सरस्वती वंदना, दीप प्रज्वलन और अतिथियों के स्वागत से हुई. तत्पश्चात इस वर्ष का ‘साहित्य सृजन रत्न सम्मान‘ नीलमचंद सांखला, ‘साहित्य सृजन श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान‘ ऋषि साव पटवारी और ‘साहित्य सृजन श्रेष्ठ काव्य पाठ सम्मान‘ कवयित्री आशा झा को दिया गया. फिर कविता पाठ का सिलसिला शुरू हुआ, तो देर तक चलता रहा. विवेक भट्ट ने पढ़ा, “महा विस्फोट से पहले असहनीय शांति होती है, अंधेरा ख़तम करने को प्रभा की क्रांति होती है, शरा संधान वध करने को हैं तैयार राघव भी, मगर सुग्रीव बाली रूप में ही भ्रांति होती है.”
सुनंदा शर्मा ने पढ़ा, “सुनंदा प्रेम की बातें बहुत कम करती है, पर जब भी करती है उसके दिल पे जख्म करती है, बड़ा इतराया करता था जो साथ होने से हमारे, आज उसकी ही कमी मेरी आंखों को नम करती है.” प्रमदा ठाकुर ने मां पर कविता पढ़ी, तो अमृतांशु शुक्ला ने पढ़ा, “अब रूठने मनाने की कोई रस्म बाकी नही रही, कहां दें दलीले की अब कोई बज्म बाकी नहीं रही, लिख देते थे पहले अनुवाद आसुंओं का भी हम, अब क्या कहें कि अब कोई नज्म बाकी नहीं रही.” आलिम नकवी, नीलमचंद सांखला, मुकेश कुमार सोनकर ने मां पर कविताएं पढ़ीं, तो सुषमा पटेल ने प्रकृति पर एक रचना पढ़ी, जिसके बोल थे, “गुलमोहर का रंग है चटक लाल रतनार, हंस-हंस गाता गीत है करे धरा शृंगार, केसर क्यारी कह रही नखरैली गुलनार, जवाकुसुम का फूल है कुसुमित गुच्छेदार.” अगली प्रस्तुतियां वंदना ठाकुर, अर्पणा अंजन, अनिल राय ‘भारत‘, ऋषि कुमार साव ‘पटवारी‘, निवेदिता वर्मा ‘मेघा‘, आशा झा, पुष्पराज गुप्ता, सुखनवर हुसैन ‘रायपुरी‘, उमेश कुमार सोनी ‘नयन‘, भारती यादव ‘मेघा‘, जावेद नदीम, विजया सुनील पांडे, अमिताभ दीवान और योगेश शर्मा ‘योगी‘ की रही. संचालन सचिव योगेश शर्मा ‘योगी‘ और महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्षा ममता खरे ‘मधु‘ ने किया.