नई दिल्ली: विधि और न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग द्वारा प्रकाशित ‘संविधान सभा की महिला सदस्यों का जीवन और योगदान’ पुस्तक का विमोचन हुआ. यह पुस्तक उन पंद्रह प्रख्‍यात महिलाओं के प्रति एक श्रद्धांजलि है, जिन्होंने भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन जिनके योगदान को मुख्यधारा के ऐतिहासिक और विधिक लेख में काफी हद तक अनदेखा किया गया. इस पुस्तक में वकीलों, समाज सुधारकों और स्वतंत्रता सेनानियों सहित इन अग्रणी महिलाओं के योगदान का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण किया गया है, जिन्होंने मुख्य रूप से पुरुष-प्रधान राजनीतिक व्‍यवस्‍था के भीतर गहरी संरचनात्मक बाधाओं को पार किया. प्रतिकूलताओं का सामना करने के बावजूद, ए महिलाएं संविधान सभा में प्रमुख आवाज़ के रूप में उभरीं. इन्होंने मौलिक अधिकारों, सामाजिक न्याय, लैंगिक समानता और लोकतांत्रिक शासन पर विचार-विमर्श को अत्‍यधिक प्रभावित किया. इस पुस्तक के प्रकाशन का उद्देश्य उनके भाषणों, बहसों और विधायी हस्तक्षेपों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करके ऐतिहासिक अंतर को पाटना है जिससे प्रमुख संवैधानिक प्रावधानों पर उनके महत्त्वपूर्ण प्रभाव के बारे में बताया जा सके. इस पुस्तक में 1917 में महिला भारतीय संघ की स्थापना से लेकर स्वतंत्र भारत में राजनीतिक प्रतिनिधित्व की अंतिम प्राप्ति तक महिलाओं की संवैधानिक आकांक्षाओं के विकास के बारे में विस्‍तार से बताया गया है. पुस्तक की मुख्य विशेषताओं में स्वतंत्रता पूर्व भारत में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी की प्रगति और स्वतंत्र राष्‍ट्र के लिए संविधान के निर्माण तथा उसके बाद की यात्रा का अन्वेषण इसे खास बनाता है.

पुस्तक में अम्मू स्वामीनाथन, जो संवैधानिक प्रावधानों में लैंगिक समानता की मुखर समर्थक थी और जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि महिलाओं के अधिकारों को विधिवत मान्यता दी जाए; या एनी मस्कारेन, जिन्होंने संघवाद और राज्यों के एकीकरण पर चर्चा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे भारत की विविधता में एकता को बल मिला; या फिर सभा में एकमात्र मुस्लिम महिला बेगम कुदसिया ऐजाज रसूल, जो धर्मनिरपेक्षता की कट्टर समर्थक और समावेशी राष्ट्रीय पहचान की समर्थक थी; या फिर सभा की पहली दलित महिला दक्षायनी वेलायुधन, जिन्होंने निर्भीकता से अस्पृश्यता का विरोध किया और वंचित समुदायों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी; या दुर्गाबाई देशमुख, जिन्होंने सामाजिक कल्याणकारी नीतियों के निर्माण और महिला शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाकर भारत के सामाजिक न्याय के प्रारंभिक प्रारूप में योगदान दिया, शामिल हैं. इसी तरह हंसा जीवराज मेहता ने भारत के मौलिक अधिकारों का प्रारूप तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि संवैधानिक बहसों में लैंगिक न्याय को महत्ता मिले. राजकुमारी अमृत कौर एक अग्रणी राजनेता, भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों की निर्माता थी और उन्होंने देश में आधुनिक स्वास्थ्य सेवा की नींव रखी. ‘भारत कोकिला’ सरोजिनी नायडू नागरिक स्वतंत्रता की एक मुखर समर्थक थी. उन्होंने भारत के लोकतांत्रिक लोकाचार पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा. सुचेता कृपलानी, जो बाद में भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी भी सभा में एक प्रमुख आवाज़ थी. व‍ह श्रम अधिकारों और शासन सुधारों की समर्थक थी. प्रतिष्ठित राजनयिक विजयलक्ष्मी पंडित ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक शासन में भारत की भूमिका का पुरजोर समर्थन किया, शामिल हैं. इस पुस्तक में अन्य प्रमुख महिलाओं के योगदान का भी उल्लेख किया गया है जिन्होंने भारत के लोकतंत्र और संवैधानिक आदर्शों को आकार देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.