नई दिल्ली: होली बीत चली, पर उसकी उमंग अभी भी जारी है. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति की अमेरिका इकाई ने वर्चुअल मंच पर ‘होली एक-रंग अनेक’ कार्यक्रम आयोजित किया. कार्यक्रम के आरंभ में समिति की अध्यक्ष मंजु मिश्रा ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए भारतीय त्योहारों की प्राचीनता, उनकी संस्कृति की गहराई और प्रवासी भारतीयों के लिए इन त्योहारों के महत्त्व पर प्रकाश डाला. इसके बाद संचालन की बागडोर रचना श्रीवास्तव ने संभाली. इस कार्यक्रम में भारत के 6 अलग-अलग राज्यों में होली मनाने की अनूठी परंपराओं का परिचय दिया गया. सबसे पहले भगवान जगन्नाथ की धरती ओड़िशा की बारी आई. कोलकाता में हिंदी विश्वविद्यालय की कुलपति नंदिनी साहू ने बताया कि ओड़िशा में होली ‘रंग’ से अधिक ‘भक्ति’ पर आधारित है. यहां होली जगन्नाथ संस्कृति से प्रेरित है, जिसमें भगवान कृष्ण की रास लीला और भक्तिमय भजनों के माध्यम से त्योहार मनाया जाता है. पुरी में होली भक्ति और आराधना का पर्व है, जहां प्राकृतिक सुंदरता और रास लीला का वर्णन विशेष रूप से किया जाता है. जवाहरलाल नेहरू महाविद्यालय पासीघाट में हिंदी विभागाध्यक्ष डा हरिनिवास पांडेय ने बताया कि पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश में होली से मिलता-जुलता एक त्योहार मनाया जाता है. यहां की गालो जनजाति में धान की फसल पकने की खुशी में एक-दूसरे के चेहरों पर चावल का पिसा हुआ लेप लगाने की परंपरा है. उत्तराखंड में बैठकी होली और खड़ी होली की परंपरा है, जो कुमाऊं और गढ़वाल मंडलों में अलग-अलग अंदाज में मनाई जाती है. इसके बारे में एमबी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, हल्द्वानी की प्रोफेसर प्रभा पंत ने बताया. उन्होंने बताया, “कुमाऊं क्षेत्र में पूस महीने के पहले रविवार से लेकर बसंत पंचमी तक होली गीतों की गूंज रहती है. रात में चौपाल लगती है, जहां लोकगीतों के साथ ठंडाई और उत्सव का आनंद लिया जाता है. कुमाऊं के होली गीतों में मथुरा, ब्रज और गोकुल की गाथाएं भी सुनाई देती हैं, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को उत्तर प्रदेश से जोड़ती हैं.”
तेलंगाना में होली अलग तरह से मनाई जाती है. यहां होलिका दहन की बजाय कामदेव की पूजा होती है. गांवों में अल्पना से सजे घरों में होली की धूम रहती है. कामदेव की मूर्ति को गांव भर में घुमाने के बाद होली का आयोजन किया जाता है. लोग होली की राख को शुभ मानते हैं और अबीर-गुलाल में मिलाकर इसे चेहरे पर लगाते हैं. तमिलनाडु में होली के समय राजा अपने शरीर पर टैटू जैसे चित्र उकेरवाते थे, जो उनकी शक्ति का प्रतीक होते थे. यहां मुरुगन भगवान के दर्शन को शुभ माना जाता है. पोंगल की तरह यहां भी लोग सड़कों पर फूलों से होली खेलते हैं और एक-दूसरे पर फूल फेंककर स्नेह जताते हैं. डा सुरभि दत्त ने तेलंगाना में होली की परंपरा पर बात करते हुए बताया कि हैदराबाद जैसे शहरों में विभिन्न राज्यों के लोग मिलकर होली में भाग लेते हैं, जिससे यह त्योहार सांस्कृतिक संगम का प्रतीक बन गया है. वहीं, आरबीएस कला एवं विज्ञान महाविद्यालय, सुलूर-कोयंबटूर की प्रोफेसर ललिता रवींद्र एन ने बताया कि तमिलनाडु की होली प्रेम और सादगी की प्रतीक है.
शुभ्रा ओझा ने ‘उड़े रे गुलाल..’ नामक डिजिटल प्रेजेंटेशन में अमेरिका में बसे प्रवासी भारतीयों की होली की तस्वीरों और वीडियो क्लिप्स ने यह दिखाया कि देश से दूर रहकर भी वे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से कितने जुड़े हुए हैं. इस प्रस्तुति को सभी ने खूब सराहा. कार्यक्रम में अवधी और भोजपुरी लोकगीतों ने समां बांध दिया. अयोध्या की प्रसिद्ध लोकगायिका संजोली पांडेय ने ‘सिया निकली अवध की ओर, होलिया खेले रामलला’ ने सभी के दिलों में उत्साह भर दिया. कैलिफोर्निया में रहने वाली शोनाली श्रीवास्तव ने ढोलक की थाप पर ‘सखी री देखो श्याम खेलन आए होली’, ‘सरजू तट राम खेले होली’ जैसे गीतों से सभी को झूमने पर मजबूर कर दिया. कक्षा 8 की छात्रा और रायबरेली की दृष्टि पांडेय ने अपनी प्रस्तुति ‘मसाने में होरी खेलत..’ से कार्यक्रम की शुरुआत की और अपने भजन ‘मैहर की सारदा भवानी..’ से समापन किया. संयोजक गौरव अवस्थी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया.