लखनऊ: पूर्व आईजी राजेश पांडेय की किताब ‘वर्चस्व‘ पर पत्रकार भूपेन्द्र पांडेय ने बातचीत की. राजेश पांडेय ने कहा कि कोविड के समय जीवन के यथार्थ से सामना हुआ. उस दौरान क्राइम बंद हो गया था क्योंकि सब अपने घरों में बंद थे. उस समय ऐसा लग रहा था कि जीवन का कोई भरोसा नहीं है. इन्हीं सब चिंताओं के बीच मैंने सोचा कि पुलिस विभाग में रहने के जो अनुभव हुए उन्हें लोगों तक किताब के माध्यम से पहुंचाया जाना बहुत जरूरी है. यह किताब श्रीप्रकाश शुक्ल के आपराधिक जीवन पर है, जो केवल पांच वर्ष का था. लेकिन इन पांच वर्षों में उसने त्राहि-त्राहि मचा दिया था. वीरेंद्र शाही की हत्या के बाद हमें श्रीप्रकाश शुक्ल को जानने का मौका मिला. लेकिन नाम पता चलने में एक साल लग गए थे. उस समय अखबार वाले कहने लगे थे कि पुलिस कैसे श्रीप्रकाश शुक्ल को पकड़ पाएगी?
पांडेय ने कहा कि उस दौर में अखबार में मुहावरा चल पड़ा था कि पुलिस पीतल बटोर रही थी. जब बहुत त्राहि त्राहि मच गई तब श्रीप्रकाश शुक्ल को पकड़ने के लिए टीम का गठन किया गया. सुहैल वाहिद ने कहा कि ‘वर्चस्व‘ बेहद शानदार किताब है. फैक्ट फिक्शन होने के बावजूद यह बहुत रोचक है.राजेश पांडेय ने कहा कि पुलिस को अपराध घटनाओं पर लिखते रहना चाहिए. पुलिस वाले लिखेंगे तो लोग उनके लिखे पर जरूर भरोसा करेंगे. जब आप दूध को दूध और पानी को पानी कहेंगे तो लोग आपका जरूर भरोसा करेंगे. पब्लिक को सच के बारे में पता चलना चाहिए. पुलिस विभाग का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि उसकी सफलता अखबार में बहुत पीछे बहुत छोटे से हिस्से में छापी जाती है लेकिन असफलता फ्रंट पेज पर छपती है.