वाराणसी: ‘माई हो ललनवा दे दा, बाबू हो सुगनवा दे दा, देसवा के करनवा अपने, बहिनि हो बिरनवा दे दा…‘ जैसे हजारों कालजयी भोजपुरी गीतों और कविताओं के रचयिता जाने माने वयोवृद्ध साहित्यकार पंडित हरिराम द्विवेदी नहीं रहे. उन्होंने स्थानीय महमूरगंज मोती झील स्थित आवास पर अंतिम सांस ली. द्विवेदी भोजपुरी लोकजीवन और कृषक संस्कृति के कवि थे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पं हरिराम द्विवेदी के निधन पर गहरा दुख जताते हुए प्रभु श्री राम से दिवंगत आत्मा की शांति की कामना की और शोकाकुल परिजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की है. पंडित हरिराम द्विवेदी के निधन की जानकारी मिलते ही देश भर से साहित्यकारों और शुभचिंतकों ने शोक जताया. द्विवेदी ने एक से बढ़कर एक गीत लिखे, जिनमें ‘मर्यादा इस देश की पहचान है, गंगा पूजा है, धर्म दीन है, ईमान है, गंगा….‘ जैसा प्रसिद्ध गंगा गीत भी शामिल था.
अपने प्रशंसकों के बीच पंडित हरिराम द्विवेदी ‘हरी भैया‘ के नाम से लोकप्रिय थे. वे आकाशवाणी से जुड़े कवि भी थे. उन्हें साहित्य अकादमी भाषा सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार और साहित्य भूषण सम्मान, हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग का साहित्य सारस्वत सम्मान सहित कई पुरस्कार मिले थे. उनकी प्रमुख कृतियों में काव्य संग्रह ‘अंगनइया‘, ‘पातरि पीर‘, ‘जीवनदायिनी गंगा‘, ‘साई भजनावली‘, ‘पानी कहे कहानी‘, ‘पहचान‘, ‘नारी‘, ‘रमता जोगी‘, ‘बैन फकीर‘, ‘हाशिये का दर्द‘, ‘नदियों गइल दुबराय‘ आदि शामिल है. मूल रूप से मिर्जापुर जिले के शेरवा गांव निवासी पंडित हरिराम द्विवेदी का जन्म 12 मार्च, 1936 को हुआ था. वे आकाशवाणी के साथ ही श्री संकट मोचन संगीत समारोह सहित अनेक बड़े-बड़े मंचों के कुशल संचालन के लिए भी लोकप्रिय थे, और बनारस शहर में उनकी एक विशेष पहचान थी. तभी तो चर्चित लेखिका चंद्रकला त्रिपाठी ने कहा कि बनारस की दुनिया खाली हो उठी है.