नई दिल्ली: भारत के सबसे बड़े रंगमंच महोत्सव ‘भारंगम’  में देश के विभिन्न कोनों से आई लोक कलाओं ने दर्शकों का मन मोह लिया. भारंगम की शुरुआती प्रस्तुतियों में भारत की लोक कला शैलियों की प्रस्तुति, रूसी लेखक एंटोन चेखव की 165वीं जयंती का स्मरण, और रंगमंच की बारीकियां  सिखाने वाले व्याख्यान-प्रदर्शन का विशेष आयोजन शामिल था. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट कारपोरेशन ‘हुडको’ के साथ लोक और शास्त्रीय नाट्य कला के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. यह समझौता हुडको की ओर से क्षेत्रीय प्रमुख राजीव गर्ग और निदेशक एनएसडी चित्तरंजन त्रिपाठी द्वारा हस्ताक्षरित किया गया. इस अवसर पर संजय कुलश्रेष्ठ, एम नागराज, राजीव शर्मा, पीके महांती आदि की उपस्थिति रही. इस अवसर पर ‘लोकरंगम’ खंड का उद्घाटन मुख्य अतिथि पद्मश्री से सम्मानित लोकगायिका मालिनी अवस्थी द्वारा किया गया. यह एक विशेष मंच है, जो भारत की समृद्ध कलात्मक विरासत और लोक कला की जीवंतता को संरक्षित एवं बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है. अवस्थी ने लोक नाटकों की शक्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लोक कला एक ही कथा के माध्यम से विभिन्न रसों को जागृत करने की क्षमता रखती है. भोजपुरी के शेक्सपियर’ कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर के प्रसिद्ध नाटक ‘बिदेसिया’ का मंचन किया गया. यह नाटक प्रवासन की त्रासदी और पीछे छूट गए लोगों की व्यथा को मार्मिक रूप से प्रस्तुत करता है. इसका मंचन संजय उपाध्याय के निर्देशन में हुआ.

संबद्ध आयोजन भारंगम के समांतर प्रस्तुतियों का एक अभिन्न हिस्सा हैं, जिनमें सेमिनार, कार्यशालाएं, छात्र प्रस्तुतियां और अन्य शैक्षणिक आदान-प्रदान शामिल होते हैं. ये कार्यक्रम रंगमंच के विविध आयामों को समझने और सीखने के अवसर प्रदान करते हैं. ‘चेखव की विरासत: कल, आज और कल शीर्षक वाली संगोष्ठी में चेखव के जीवन, कृति और उनकी समकालीन प्रासंगिकता पर चर्चा की गई. मीता वशिष्ठ, निहारिका सिंह, और विक्रम शर्मा जैसे अनुभवी रंगकर्मियों ने चेखव के नाटकों में यथार्थवादी अभिनय तकनीकों के उपयोग पर प्रकाश डाला और अपने अनुभव साझा किए. वक्ताओं ने चेखव की कहानियों, नाटकों, और उनके लेखन शैली का विस्तृत विश्लेषण किया, साथ ही उन्होंने चेखव की रचनाओं का आज के समय में क्या महत्त्व है, इस पर भी चर्चा की. संगोष्ठी की शुरुआत और समापन संबोधन शांतनु बोस ने दिए. इस चर्चा सत्र में स्वानंद किरकिरे भी प्रतिभागी के रूप में शामिल हुए. पैनल ने चेखव के यथार्थवाद में योगदान और उनकी समकालीन कहानी कहने की प्रासंगिकता पर विचार किए. मीता वशिष्ठ ने ‘थ्री सिस्टर्स’ के निर्देशन और आधुनिक दर्शकों के लिए चेखव की थीम्स को रूपांतरित करने पर उनके विचार, जिन्होंने इस नाटक को नई दृष्टि से प्रस्तुत किया. इस दिन भारत रंग महोत्सव 2025 के तहत राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के थिएटर एप्रिशियेशन कोर्स के 14वें संस्करण का उद्घाटन भी हुआ.