चेन्नई: प्राचीन ज्ञान और वर्तमान प्रगति के बीच की खाई को पाटने के उद्देश्य से सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान ने द्वारका दास गोवर्धन दास वैष्णव कालेज के सहयोग से ‘भारतीय ज्ञान प्रणालियों में क्षमता निर्माण: प्रलेखन, सत्यापन और संचार’ पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया. यह कार्यशाला वैज्ञानिक रूप से मान्य सामाजिक भारतीय पारंपरिक ज्ञान’ के एक भाग के रूप में वैज्ञानिक रूप से मान्य पारंपरिक ज्ञान को समाज तक पहुंचाने के लिए आयोजित की गई थी. कार्यशाला का उद्देश्य संकाय सदस्यों, शिक्षकों, वैज्ञानिकों और विज्ञान संचारकों सहित प्रतिभागियों को भारतीय ज्ञान प्रणाली और इसके प्रलेखन, सत्यापन और प्रसार के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी देना था. कार्यशाला का उद्घाटन चेन्नई स्थित नीति अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष और पद्मश्री से सम्मानित प्रोफेसर एमडी श्रीनिवास ने सत्र के मुख्य अतिथि भारतीय ज्ञान प्रणाली केंद्र की अनुसंधान निदेशक डा के विजयलक्ष्मी, डीडीजीडी वैष्णव कालेज के प्राचार्य डा एस संतोष बाबू द्वारा किया गया. एसोसिएट प्रोफेसर डा उथरा दोराराजन ने वक्ताओं और प्रतिभागियों का स्वागत किया और आधुनिक विज्ञान के साथ भारतीय पारंपरिक ज्ञान के एकीकरण पर जोर दिया. प्राचार्य डा एस संतोष बाबू ने भारतीय ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए कालेज की विभिन्न पहलों और शिक्षा में इसके महत्त्व पर प्रकाश डाला. प्रोफेसर श्रीनिवास ने भारत की समृद्ध बौद्धिक परंपराओं, आधुनिक विज्ञान में भारतीय ज्ञान प्रणाली की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला और सहयोगात्मक प्रयासों और पहलों पर जोर दिया.
भारत की विज्ञान और प्रौद्योगिकी विरासत पर पहले तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर केवी सरमा रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर एमएस श्रीराम ने की, जिसमें डा के विजयलक्ष्मी और डा वी आरती, डा चारु लता शामिल थीं. डा के विजयलक्ष्मी ने सतत विकास के लिए कृषि में स्वदेशी ज्ञान पर जोर दिया. उन्होंने विभिन्न पारंपरिक चावल की भूमि प्रजातियों और उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता का उल्लेख किया. डा वी आरती ने पारंपरिक सिद्ध चिकित्सा पर आकर्षक व्याख्यान दिया. उन्होंने सिद्ध चिकित्सा प्रणाली के विभिन्न पहलुओं और इस पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को आधुनिक विज्ञान के साथ एकीकृत करने के तरीकों पर प्रकाश डाला. भारतीय ज्ञान प्रणाली के संचार पर व्यावहारिक प्रशिक्षण के दूसरे सत्र का नेतृत्व वरिष्ठ वैज्ञानिक डा परमानंद बर्मन और टीम ने किया, जिन्होंने प्रभावी विज्ञान संचार रणनीतियों पर इंटरैक्टिव शिक्षण अनुभव प्रदान किए. उन्होंने उपस्थित लोगों को विभिन्न विज्ञान संचार उपकरणों और इन्फोग्राफिक्स और लघु वीडियो डिजाइन करने के लिए उनका उपयोग करने के तरीकों से परिचित कराया. कार्यशाला का समापन प्रतिभागियों के फीडबैक सत्र के साथ हुआ, जिसमें से कई ने कार्यशाला से अपने सीखने के अनुभव साझा किए. कार्यशाला में कहानियों और प्रकाशनों की एक प्रदर्शनी भी लगाई गई. डा उथरा दोराईराजन ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया तथा भारत की समृद्ध वैज्ञानिक विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने में इस तरह की पहल के महत्त्व पर जोर दिया.