जम्मू: जम्मू विश्वविद्यालय और जम्मू-कश्मीर कला, संस्कृति और भाषा अकादमी के उर्दू विभाग द्वारा ‘उर्दू साहित्य के विकास में गैर-मुस्लिम लघु कथा लेखकों का योगदान‘ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का निष्कर्ष यह था कि उर्दू विशुद्ध रूप से भारत की धरती पर ही पैदा हुई, पली और आगे बढ़ी. यही नहीं इस भाषा के विकास में गैर मुसलमानों का योगदान काफी खास है. समापन सत्र में गजल संध्या का आयोजन ‘शाम-ए-गजल‘ नाम से हुआ. इस अवसर पर गजल गायिका सीमा अनिल सहगल ने वह गजल सुनाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया, जिसे उन्होंने कभी प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान प्रस्तुत किया था. अली सरदार जाफरी की कविता पर आधारित गजल सत्र को इस दो दिवसीय संगोष्ठी में शामिल छात्रों, विद्वानों और प्रतिनिधियों ने बहुत सराहा. इससे पहले दिन में दो तकनीकी सत्रों के दौरान गैर-मुस्लिम लघु कथाकार पर विभिन्न शोध पत्र प्रस्तुत हुए, जिनमें प्रो सगीर अफराहीम, प्रो शोहेब इनायत मलिक, प्रो अबू बेकर अबाद द्वारा प्रस्तुत किए गए. डा टीआर रैना, डा कौसर रसूल, डा चमन लाल, डा फरहत शमीम और डा शहनवाज कादरी ने संचालन किया. पहले तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो ख्वाजा एकरामउद्दीन, प्रो फजुल्लाह मुकरम और प्रो सगीर अफ्राहेम ने की.
दूसरे तकनीकी सत्र में प्रो मुश्ताक आलम कादरी, प्रो असदुल्ला वानी, डा अल्ताफ हुसैन, डा आसफ मलिक, डा अब्दुल हक ने विभिन्न पहलुओं पर पेपर प्रस्तुत किए. अध्यक्षता खालिद हुसैन, प्रो मुश्ताक आलम कादरी और डा टीआर रैना ने की. डा चमन लाल, डा अब्दुल रशीद मन्हास ने क्रमशः दो तकनीकी सत्रों का संचालन किया, जबकि प्रोफेसर शोहब इनायत मलिक ने तकनीकी सत्रों में धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया. उन्होंने बताया कि निकट भविष्य में जम्मू-कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी के सहयोग से ‘जम्मू-कश्मीर में उर्दू भाषा एवं साहित्य के विकास में डोगरा शासकों का योगदान‘ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया जाएगा. विभाग रसा जावेदानी की पुण्यतिथि पर ‘उर्दू और कश्मीर कवि रस जावेदानी के जीवन और कार्यों‘ पर एक दिवसीय सेमिनार भी आयोजित करेगा. याद रहे कि ‘उर्दू साहित्य के विकास में गैर-मुस्लिम लघु कथाकारों का योगदान‘ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन प्रमुख सचिव संस्कृति सुरेश कुमार गुप्ता ने किया था. उन्होंने अपने संबोधन में उर्दू को भारतीय बताया और राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने में भाषा और उर्दू लेखकों के योगदान पर चर्चा की थी. दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में बड़ी संख्या में छात्रों, विद्वानों, संकाय सदस्यों और नागरिक समाज के सदस्यों ने भाग लिया.