चौथा सत्र : ‘लफ्जों का सफरनामा’
अक्षय पांडेय, जागरण
पटना : कितनों के इश्क परवान चढ़े। कितनी प्रेम कड़ियों को ठौर मिला। समीर की कलम से निकले शब्द को सुर मिले और जीवन का हर दौर सामने आया। बिहार संवादी के सत्र ‘लफ्जों का सफरनामा’ में समीर अंजान के अल्फाज ने सिनेमा के पर्दे को उठाया। फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम और जाने माने रेडियो उद्घोषक यूनुस खान से कुछ देर की चर्चा ने 90 के दौर में कैसेट के किस्से और कहानियां से जज्बातों की मुकम्मल किताब तैयार कर दी। खुद के मशहूर होने को समीर ने उस दौर के ख्याल को गीतों में ढलना से जोड़ा। सीख दी कि हमारी इंडस्ट्री में नेपोटिस्म नहीं, केवल प्रतिभा बोलती है। युवाओं को एक बात कह सोच में डाला कि मैंने जो अब तक किया है, वह कतरा भर है, पर समंदर किसी को मिलता नहीं। बातचीत के अंत में यह भी आश्वासन मिला कि आप मुझे 100 वर्ष सुनिए, मैं सौ साल तक लिखता रहूंगा।
सत्र की शुरुआत समीर के गीत गूंजे। मुझे नींद न आए…, कोयल सी तेरी बोली…, तुम दिल की धड़कन में…, खींच मेरी फोटो और वो मेरी नींद …, मेरा चैन मुझे लौटा दो… सुन सब अपने दौर को याद करने लगे। समीर ने कहा कि मेरे गीतों को श्रोताओं ने मशहूर कराया। मेरे लिखने में कोई खास अंतर नहीं, फर्क इतना है कि आप गीत सुनते हुए मंजर भी आंखों के सामने देख सकते हैं। समीर ने कहा कि मैंने हर दिन, हर समय गीत ही लिखे। 20 वर्ष केवल तीन घंटे सोया। उन्होंने कहा कि सिनेमा-संगीत हर 20 साल में बदलता है।
किरदार के दायरे में रहता है गीतकार
समीर ने समझाया कि आसान लिखना मुश्किल है, मुश्किल लिखना सरल है। समझाया कि भाषा किरदार की होती है। फिल्म इंडस्ट्री बावफा भी है और बेवफा भी। मन रमा लेने की बात है। युवाओं को गुरुमंत्र दिया कि पहले खूब पढ़ें। खुद के गुरु बनें। जीवन का दूसरा नाम संघर्ष है। हार मानने वालों से कहा कि सफलता के बाद संघर्ष अधिक हो जाता है। कवि और गीतकार के अंतर को भी समझाया। बताया कि कवि ट्यून एवं कहानी के लिए नहीं लिखता। वह स्वच्छंद होता है। गीतकार कहानी और किरदार के दायरे में रहता है। हमें सामने वाले के दिल को समझना पड़ता है।
तानसेन नहीं, कानसेन होने की जरूरत
सीखा किसी से भी जा सकता है। समीर ने बताया कि लेखक के लिए समाज को समझना जरूरी है। संगीत के लिए तानसेन नहीं, कानसेन होने की जरूरत है। मैंने बच्चों से सीखा। नसीहत दी कि वक्त की नजाकत समझें। समय के हिसाब से अपने को बदलें। ख्यालों को नया रंग दें। उन्होंने मुश्किलों को भी जीवन का हिस्सा बताया। कहा कि किसी के लफ्ज चुरा लेना सही नहीं, आप जो हैं, वही रहें।
फूहड़ भोजपुरी गीत हैं किसके लिए
समीर ने भोजपुरी गीतों में अश्लीलता पर चिंता जाहिर करने हुए कहा कि ऐसे तो यह इंडस्ट्री बंद हो जाएगी। आने वाली पीढ़ी बर्बाद हो जाएगी। उन्होंने लेखकों से पूछा कि आखिर वह ऐसे गीत लिख किसके लिए रहे हैं। ऐसे गीतों के लिए सेंसरशिप होनी चाहिए। अब और पहले के गीत का अंतर भी दर्शकों को पता चला। समीर ने कहा कि पहले गीत दिल को लगते थे। अब गीत दिमाग से लिखे जा रहे। शोर काफी हो रहा है। गीतकार ने कहा कि जो आम आदमी की बात बोलेगा, वह इस विधा में सफल है। उन्होंने एक सुखद बात भी कही कि आने वाला पांच साल सिनेमा के लिए बेहतरीन है।