– वक्ताओं ने कहा, भारत की संस्कृति में है जिज्ञासा, बिहार ने दिया बुद्ध का ज्ञान

अश्विनी, जागरण

पटना : ज्ञान की भूमि पर संवाद। इस दर्शन में ही हैं जीवन और समाज के गूढ़ रहस्य। विषय व्यक्तिगत भी हो सकता है। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक…कुछ भी, पर संवाद की पृष्ठभूमि में हल भी है, नई राह भी। दैनिक जागरण के मंच पर आयोजित ‘बिहार संवादी’ का यही निहितार्थ शनिवार के विभिन्न सत्रों में निकला।

शुभारंभ बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री प्रो. संजय पासवान ने पीपल के पौधे में जल अर्पित कर किया। राज्यपाल ने इसे बोधिवृक्ष की संज्ञा दी। प्रतीक उस छाया का, जहां बुद्ध को ज्ञान मिला। संवाद का क्रम जैसे-जैसे बढ़ता गया, हर सत्र में इस अवधारणा को ही बल मिला। यही कि ज्ञान अनिवार्य है, पर उसका अर्जन संवाद बिना कहां। सुंदर उद्धरणों से परिभाषित सत्र। यह व्यक्तिगत भी दिखा, समष्टि में भी। तभी तो प्रख्यात गीतकार समीर अंजान भी बोल बैठे, पिता से संवाद ने ही उन्हें आज इस जगह तक पहुंचाया, अन्यथा राह क्या होती, पता नहीं। यह व्यक्तिगत मामला, पर संवाद की अनिवार्यता यहां भी। पिता ने समीर से यही तो पूछा था कि किसी लड़की से प्रेम किया? हां तो क्यों? जवाब मिला, पता नहीं क्यों? इसी पता नहीं में व्यक्तित्व का समर्पण था। यह भाव मन में है तो जीवन के हर क्षेत्र में होगा। पिता ने उन्हें अनुमति दे दी, गीतों की दुनिया में जा सकते हो। यह है संवाद का सुंदर उदाहरण। इस संवादी ने यह संदेश भी दिया कि नैराश्य भाव कहीं भी पनप नहीं सकता, यदि कोई संवाद करने वाला मिल जाए।

सत्र के शुभारंभ में राज्यपाल ने जिन मूल्यों की ओर इशारा किया, वही दृष्टि विभिन्न दृष्टिकोणों के साथ आगे बढ़ रही थी। असंतोष में ही संपन्नता, यानी जिज्ञासा को शांत नहीं होने दें। जहां संतुष्ट हो गए, वहीं ठहराव। दुनिया की कई वैभवशाली सभ्यताएं आज कहां हैं? भारत अपनी संस्कृति के साथ आज भी दुनिया को संदेश दे रहा। इसलिए कि यह ज्ञान की संस्कृति है। हां, ज्ञान को बांटना अनिवार्य है, अन्यथा एक संकुचित सीमा का निर्माण हो जाएगा। उसके भाव में वह विज्ञान भी शामिल है, जहां जिज्ञासा है, अन्यथा नए नए अनुसंधान कहां। प्रसिद्ध वरिष्ठ पत्रकार व पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर भी अपने सत्र में इसे ही आगे बढ़ाते हैं, हमेशा प्रश्न पूछो। सही प्रश्न। जवाब मिले, न मिले।  संवादी के मंथन में ये गूढ़ बातें निकलकर आईं। प्रो. संजय पासवान ने बिहार की उस परंपरा का उदाहरण दिया, जहां मंडन मिश्र की पत्नी भारती ने शंकाराचार्य से शास्त्रार्थ किया था। संवाद यहां की जड़ों में है।

जब संविधान और आरक्षण विषय पर सत्र चला तो जेएनयू के समाजशास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रो. विवेक कुमार और दिल्ली विश्वविद्यालय के डा. राजकुमार फलवारिया के साथ वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने बात की। निचोड़ यह कि समानता आने तक यह जरूरी है, पर उस वंचित समाज को मुख्यधारा में लाने की जरूरत, जो अभी तक इससे वंचित हैं। यह कड़ी सत्र दर सत्र बढ़ती गई। रविवार को भी यह क्रम जारी रहेगा।