नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट से कई बार चौंका देते हैं. तमिल के महान संत कवि तिरुवल्लुवर की जयंती पर उन्होंने यही किया. सोशल मीडिया एक्स पर उन्होंने लिखा, “हम महान तमिल संत तिरुवल्लुवर की याद में तिरुवल्लुवर दिवस मनाते हैं, जिनका ‘तिरुक्कुरल’ में निहित गहन ज्ञान हमें जीवन के कई पहलुओं में मार्गदर्शन करता है. उनकी शाश्वत शिक्षाएं समाज को सद्गुण और अखंडता पर ध्यान केंद्रित करने, सद्भाव और समझ की दुनिया को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करती हैं. हम उनके द्वारा समर्थित सार्वभौमिक मूल्यों को अपनाकर उनके दृष्टिकोण को पूरा करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को भी दोहराते हैं.” प्रधानमंत्री का ऐसा लिखना था कि इंटरनेट पर लोगों ने इंटरनेट पर तिरुवल्लुवर को ढूंढना शुरू कर दिया. आइए हम आपको इस संत कवि के जीवन के बारे में संक्षेप में बताते हैं. तिरुवल्लुवर प्रख्यात तमिल कवि हैं. उन्होंने लोगों को बताया कि शुद्ध और पवित्रता से परिपूर्ण दिव्य जीवन जीने के लिए परिवार को छोड़कर संन्यासी बनने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि एक व्यक्ति गृहस्थ या गृहस्वामी का जीवन जीने के साथ-साथ एक दिव्य, शुद्ध और पवित्र जीवन जी सकता है. उनकी ज्ञान भरी बातें और शिक्षा जिस पुस्तक में उपलब्ध हैं वह ‘तिरुक्कुरल’ के नाम से जाना जाता है
तमिल साहित्य में नीति पर आधारित कृति ‘तिरुक्कुरल’ को तमिल की सबसे श्रद्धेय प्राचीन कृति माना जाता है. तिरुक्कुरल का निर्माण तिरु और कुरल दो शब्दों को जोड़कर हुआ. यह कृति तीन खंडों में विभाजित है. पहले खंड में अरम- यानी विवेक और सम्मान के साथ अच्छे नैतिक व्यवहार ‘सही आचरण’ का उल्लेख है, तो खंड दो में पोरुल- यानी सांसारिक मामलों की सही व्याख्या की गई है और तीसरे अनुभाग इनबम- यानी पुरुष और महिला के बीच प्रेम संबंधों पर विचार किया गया है. प्रथम खंड में 38 अध्याय हैं, दूसरे में 70 अध्याय और तीसरे में 25 अध्याय हैं. प्रत्येक अध्याय में कुल 10 दोहे या कुरल हैं, इस तरह इस कृति में 1330 दोहे हैं. तमिल साहित्य के सौंदर्य और समृद्धि को जानने में यह कृति सहायक है. हालांकि संत तिरुवल्लुवर को शैव, वैष्णव, जैन, बौद्ध सभी अपना बताते हैं, पर उनकी कृति किसी भी विशिष्ट या सांप्रदायिक धार्मिक आस्था की वकालत नहीं करती है. यह और बात है कि उनकी कृति का आरम्भ सर्वशक्तिमान ईश्वर को प्रणाम करने वाले एक अध्याय से होता है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि संत तिरुवल्लुवर आस्तिक थे और मानव के कल्याण में विश्वास रखते थे.