जालंधर: पंजाब की माटी में रची-बसी साहित्यकार गीता डोगरा के निधन का यों अदेखा रह जाना, लेखक जगत के साथ ही साहित्य से जुड़े लोगों की चिंता का सबब होना चाहिए. एक ऐसी रचनाकार जिन्होंने करीब 45 साल लेखन क्षेत्र में बिताया और जिन्हें अपनी काव्य पुस्तक ‘मन गिलहरी‘ के लिए केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा सम्मानित किया जा चुका था के जाने की खबर कहीं प्रमुखता से आई ही नहीं, जबकि 15 से अधिक किताबों की यह लेखिका इंद्रनाथ मदान पुरस्कार, काव्य कौस्तुभ पुरस्कार से भी सम्मानित थीं. यह और बात है कि पंजाब की ही एक अन्य हिंदी लेखिका राजवंती मान उन्हें बहुत मार्मिक ढंग से याद किया. उन्होंने लिखा- गत महीने रिकार्डिंग के सिलसिले में आकाशवाणी जालंधर जाना हुआ तो ज्ञात हुआ कि जालंधर में साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र गीता डोगरा का घर ही क्यों रहता है. यह एहसास उनके घर पहुंच कर उनकी मेजबानी से सहज ही हो गया. इस अवसर पर उन्होंने अपनी दो पुस्तकें भेंट कीं. ‘बारिश घर‘ और दूसरी ‘द्रौपदी: अग्नि सुता‘.
गीता डोगरा की प्रकाशित पुस्तकों की चर्चा करते हुए उन्होंने लिखा कि वह एक पत्रकार और उससे अच्छी कवि हैं. उनकी कविताओं में प्रेम सर्वत्र व्याप्त है. भाषा सरल सहज और प्रवाहमय है. ‘बारिश घर‘ काव्य संग्रह की विशेषता यह है कि इस संग्रह की सारी कविताएं बारिश के इर्द-गिर्द लिखी गई हैं. बारिश जो प्रेमी प्रेमिका के लिए अलग अर्थ और भाव रखती है, गरीब के लिए अलग, किसान के लिए अलग अर्थात बारिश अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग तरह का तरह का रास-रंग रचती है. गीता अपनी कविता ‘बारिश बन छू लूंगी‘ में कुछ यों रचती हैं, ‘मैं लौटूंगी/ बादल बनकर/ छू लूंगी तुम्हें /बारिश बनकर/ लग जाऊंगी/ तेरे गले/तुम कांपोगे/ मैं समाती रहूंगी तुम में/ तुम अदने से/ परिंदे बन जाना.‘ उनकी अनेक कविताएं यथा भीगे मौसम में, प्यास, प्रेम के रंग, बस प्रेम किया, बारिश घर में हम, आदि इसी भाव भूमि में लिखी गई कविताएं हैं, जो मन को भिगोती हैं, तरंगित करती हैं, सहलाती हैं. लेकिन उनके यहां कविता में ‘वह औरत‘ भी है जो कहती है- ‘उन कच्चे घरों में से एक आवाज उठी थी/ औरत की न्याय की गुहार लगाते और/ उसे दबाने के लिए/ सारा गांव जुट गया… मान ने गीता के संग्रह की अनेक कविताओं की चर्चा के साथ उन्हें बहुत शिद्दत से याद किया.