नई दिल्ली: सार्वजनिक अभिलेखों के 34 करोड़ से अधिक पृष्ठ, जिनमें फाइलें, खंड, मानचित्र, संधियां, दुर्लभ पांडुलिपियां, मानचित्र संबंधी अभिलेख, संसदीय बहस, जनगणनाएं, यात्रा विवरण, निषिद्ध साहित्य और सरकारी राजपत्र शामिल हैं, को संजोने वाले भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार ने अपना 135वां स्थापना दिवस मनाया. इन प्राचीन अभिलेखों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा संस्कृत, फारसी, ओड़िआ और अन्य भाषाओं में है. अभिलेखागार ने इस अवसर पर ‘वास्तुकला के माध्यम से भारतीय विरासत’ पर केंद्रित एक प्रदर्शनी आयोजित की. जिसका उद्घाटन केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने किया. प्रदर्शनी में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित किया गया, जो हजारों वर्षों से चली आ रही विविध वास्तुकला के चमत्कारों में परिलक्षित होती है और उसमें विभिन्न शैलियां, प्रभाव और ऐतिहासिक काल शामिल हैं. प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर मध्ययुगीन मंदिरों, मुगल स्मारकों और औपनिवेशिक युग की संरचनाओं तक, भारतीय वास्तुकला देश के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विकास का वर्णन करती है.भारतीय विरासत की वास्तुकला संबंधी ऐतिहासिक धरोहरों के माध्यम से व्यापक जानकारियां उपलब्ध कराने के लिए, प्रदर्शनी ने इन स्थलों को विषयगत समूहों में वर्गीकृत किया, जिससे उनके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व को गहराई के साथ समझा जा सके. अभिलेखीय भंडार से जुड़े कुछ चुनिंदा मूल दस्तावेजों को प्रदर्शित किया गया, जिसमें आधिकारिक सरकारी फाइलें, प्रतिष्ठित व्यक्तियों के निजी कागजात, पुरातात्विक उत्खनन रिकार्ड, यूनेस्को के दस्तावेज और एनएआई लाइब्रेरी की दुर्लभ पुस्तकें शामिल थीं.
शेखावत ने इस प्रदर्शनी के आयोजन के लिए भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार की सराहना की और भारत की समृद्ध दस्तावेजी विरासत के संरक्षण में इसके योगदान पर प्रकाश डाला. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय अभिलेखागार वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े डिजिटलीकरण कार्यक्रम पर काम कर रहा है, जिसमें एक महीने में छह लाख से अधिक पृष्ठों का संरक्षण किया जा रहा है और प्रतिदिन उनमें से लाखों का डिजिटलीकरण किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इस डिजिटलीकरण कार्यक्रम की सफलता ने ‘ज्ञान भारतम मिशन’ के शुभारंभ को प्रेरित किया है, जो भारत के ज्ञान के विशाल भंडार तक पहुंच का विस्तार करने के उद्देश्य से जुड़ी एक दूरदर्शी पहल है. इस अवसर पर, भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार ने ‘थम्ब प्रिंटेड: चंपारण, इंडिगो पीजैंट्स स्पीक टू गांधी वाल्यूम III’ नामक पुस्तक का भी विमोचन किया. इस खंड में 423 गवाहियां थीं, जिनमें पांच महिलाओं, 11 नाबालिगों सहित 143 मुख्य वसीयतकर्ता शामिल थे, 76 ने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे और चार के पास कोई हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान नहीं था. श्रृंखला का यह तीसरा खंड ऐतिहासिक चंपारण सत्याग्रह पर केंद्रित है.संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक संबद्ध कार्यालय भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार की स्थापना मूल रूप से 11 मार्च 1891 को कलकत्ता, अब कोलकाता में इंपीरियल रिकार्ड विभाग के रूप में की गई थी. 1911 में राजधानी के दिल्ली में स्थानांतरित होने के बाद, सर एडविन लुटियंस द्वारा डिजाइन किया गया वर्तमान एनएआई भवन 1926 में पूरा हुआ. कलकत्ता से नई दिल्ली में अभिलेखों के पूर्ण हस्तांतरण को 1937 में अंतिम रूप दिया गया था. भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार सार्वजनिक अभिलेख अधिनियम, 1993 और सार्वजनिक अभिलेख नियम, 1997 को लागू करने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में भी कार्य करता है. नई दिल्ली: सार्वजनिक अभिलेखों के 34 करोड़ से अधिक पृष्ठ, जिनमें फाइलें, खंड, मानचित्र, संधियां, दुर्लभ पांडुलिपियां, मानचित्र संबंधी अभिलेख, संसदीय बहस, जनगणनाएं, यात्रा विवरण, निषिद्ध साहित्य और सरकारी राजपत्र शामिल हैं, को संजोने वाले भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार ने अपना 135वां स्थापना दिवस मनाया. इन प्राचीन अभिलेखों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा संस्कृत, फारसी, ओड़िआ और अन्य भाषाओं में है. अभिलेखागार ने इस अवसर पर ‘वास्तुकला के माध्यम से भारतीय विरासत’ पर केंद्रित एक प्रदर्शनी आयोजित की. जिसका उद्घाटन केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने किया. प्रदर्शनी में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित किया गया, जो हजारों वर्षों से चली आ रही विविध वास्तुकला के चमत्कारों में परिलक्षित होती है और उसमें विभिन्न शैलियां, प्रभाव और ऐतिहासिक काल शामिल हैं. प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर मध्ययुगीन मंदिरों, मुगल स्मारकों और औपनिवेशिक युग की संरचनाओं तक, भारतीय वास्तुकला देश के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विकास का वर्णन करती है.भारतीय विरासत की वास्तुकला संबंधी ऐतिहासिक धरोहरों के माध्यम से व्यापक जानकारियां उपलब्ध कराने के लिए, प्रदर्शनी ने इन स्थलों को विषयगत समूहों में वर्गीकृत किया, जिससे उनके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व को गहराई के साथ समझा जा सके. अभिलेखीय भंडार से जुड़े कुछ चुनिंदा मूल दस्तावेजों को प्रदर्शित किया गया, जिसमें आधिकारिक सरकारी फाइलें, प्रतिष्ठित व्यक्तियों के निजी कागजात, पुरातात्विक उत्खनन रिकार्ड, यूनेस्को के दस्तावेज और एनएआई लाइब्रेरी की दुर्लभ पुस्तकें शामिल थीं.
शेखावत ने इस प्रदर्शनी के आयोजन के लिए भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार की सराहना की और भारत की समृद्ध दस्तावेजी विरासत के संरक्षण में इसके योगदान पर प्रकाश डाला. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय अभिलेखागार वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े डिजिटलीकरण कार्यक्रम पर काम कर रहा है, जिसमें एक महीने में छह लाख से अधिक पृष्ठों का संरक्षण किया जा रहा है और प्रतिदिन उनमें से लाखों का डिजिटलीकरण किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इस डिजिटलीकरण कार्यक्रम की सफलता ने ‘ज्ञान भारतम मिशन’ के शुभारंभ को प्रेरित किया है, जो भारत के ज्ञान के विशाल भंडार तक पहुंच का विस्तार करने के उद्देश्य से जुड़ी एक दूरदर्शी पहल है. इस अवसर पर, भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार ने ‘थम्ब प्रिंटेड: चंपारण, इंडिगो पीजैंट्स स्पीक टू गांधी वाल्यूम III’ नामक पुस्तक का भी विमोचन किया. इस खंड में 423 गवाहियां थीं, जिनमें पांच महिलाओं, 11 नाबालिगों सहित 143 मुख्य वसीयतकर्ता शामिल थे, 76 ने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे और चार के पास कोई हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान नहीं था. श्रृंखला का यह तीसरा खंड ऐतिहासिक चंपारण सत्याग्रह पर केंद्रित है.संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक संबद्ध कार्यालय भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार की स्थापना मूल रूप से 11 मार्च 1891 को कलकत्ता, अब कोलकाता में इंपीरियल रिकार्ड विभाग के रूप में की गई थी. 1911 में राजधानी के दिल्ली में स्थानांतरित होने के बाद, सर एडविन लुटियंस द्वारा डिजाइन किया गया वर्तमान एनएआई भवन 1926 में पूरा हुआ. कलकत्ता से नई दिल्ली में अभिलेखों के पूर्ण हस्तांतरण को 1937 में अंतिम रूप दिया गया था. भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार सार्वजनिक अभिलेख अधिनियम, 1993 और सार्वजनिक अभिलेख नियम, 1997 को लागू करने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में भी कार्य करता है.