नई दिल्ली: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में ‘सतत विकास के लिए भाषाओं को महत्त्व देना’ विषय पर केंद्रित एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें प्रख्यात विद्वानों, भाषाविदों और सांस्कृतिक विशेषज्ञों को सतत विकास को बढ़ावा देने में भाषाओं की भूमिका पर विचार-विमर्श करने के लिए जोड़ा गया. उद्घाटन सत्र में ‘भारतीय कैलीग्राफी: राजीव कुमार की कला के माध्यम से प्राचीन ज्ञान का अनावरण’ का शुभारंभ हुआ. इस अवसर पर आशना और रितु माथुर द्वारा क्यूरेट की गई प्रदर्शनी ‘भाषार्रिति’ का उद्घाटन भी हुआ. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में यूनेस्को के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय कार्यालय के निदेशक और प्रतिनिधि टिम कर्टिस और विशिष्ट अतिथि के रूप में संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव लिली पांडेय उपस्थित थीं. सत्र की अध्यक्षता आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डा सच्चिदानंद जोशी ने की. स्वागत भाषण प्रो रमेश चंद्र गौड़ ने दिया. अपने संबोधन में टिम कर्टिस ने जोर दिया कि अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाना गहन रूप से व्यक्तिगत और सार्वभौमिक रूप से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह उन भाषाओं का सम्मान करता है जो हमारे विचारों और शब्दों को आकार देती हैं. संचार के मात्र उपकरणों से बढ़कर, भाषाएं पहचान को परिभाषित करती हैं और व्यक्तियों को उनके इतिहास और समुदायों से जोड़ती हैं. दक्षिण एशिया के समृद्ध भाषाई परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए कर्टिस ने कहा कि शोध से संकेत मिलता है कि 7,000 से अधिक भाषाएं खतरे में हैं, जिनमें स्वदेशी भाषाएं सबसे अधिक असुरक्षित हैं. ये भाषाएं अद्वितीय ज्ञान प्रणालियों और सहस्राब्दियों के ज्ञान को समाहित करती हैं, जिससे उनका नुकसान सांस्कृतिक विरासत के लिए खतरा है. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2022-2032 को स्वदेशी भाषाओं के दशक के रूप में घोषित करने का उल्लेख किया, जिसका उद्देश्य भाषाई खजानों का दस्तावेजीकरण, पुनरुद्धार और उत्सव मनाना है. उन्होंने इस संबंध में आईजीएनसीए के चल रहे योगदान को स्वीकार किया और मातृभाषा दिवस के आयोजन के लिए आभार व्यक्त किया. बहुभाषी शिक्षा के महत्त्व पर जोर देते हुए, उन्होंने भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भाषाई विविधता को अपनाने, सीखने के परिणामों और राष्ट्रीय एकता दोनों को बढ़ाने के लिए एक माडल के रूप में उद्धृत किया. उन्होंने दृढ़ता से कहा कि यूनेस्को स्वदेशी भाषा संरक्षण के प्रयासों को बढ़ा रहा है, सामुदायिक नेतृत्व वाली पहलों की वकालत कर रहा है जो भाषाई समुदायों को जोड़ती हैं और समानता को बढ़ावा देती हैं. कर्टिस ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि भाषा न केवल संचार का एक उपकरण है, बल्कि एक तरह से, स्वयं मानवता को समझने का एक पासपोर्ट है. जब हम अपनी मातृभाषा में बोलते हैं, तो हम केवल शब्दों का आदान-प्रदान नहीं करते हैं, बल्कि दुनिया को देखने और व्याख्या करने के तरीकों को साझा करते हैं. एक दूसरे की मातृभाषा का सम्मान करके, हम ऐसी समझ को सुगम बनाते हैं जो सीमाओं और संस्कृतियों से परे है.
डा सच्चिदानंद जोशी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि यह स्वीकार करते हुए हमेशा खुशी होती है कि भारत उन राष्ट्रों में से एक है जहां भाषाओं और बोलियों की संख्या सबसे अधिक है. एक समय में पूरे देश में 1,700 से अधिक भाषाएं बोली जाती थीं, और यह भाषाई संपदा लंबे समय से गर्व का विषय रही है. हालांकि, सिक्के का दूसरा पहलू भाषाओं की तेजी से गिरावट है, कई भाषाएं चिंताजनक दर से गायब हो रही हैं, यह एक ऐसा मुद्दा है जो गंभीर चिंता का विषय है. उन्होंने जोर दिया कि भाषाओं को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए सामूहिक प्रयास किए जा रहे हैं, और राष्ट्रीय शिक्षा नीति सही ढंग से किसी की मातृभाषा में शिक्षा पर महत्त्वपूर्ण जोर देती है. भाषा पर चर्चा करते हुए, उन्होंने कहा कि इसमें तीन मूलभूत घटक होते हैं – भाषा स्वयं, लिपि और ध्वन्यात्मकता. उन्होंने बताया कि इनमें से ध्वन्यात्मकता मातृभाषाओं के बारे में बातचीत में सबसे अधिक अनदेखा पहलू है. उन्होंने जोर देकर कहा कि ध्वन्यात्मकता पर ध्यान दिए बिना, एक भाषा अधूरी रहती है. प्रो रमेश चंद्र गौड़ ने जोर दिया कि किसी भी भाषा के महत्त्व के बारे में कोई असहमति नहीं हो सकती है. उन्होंने देखा कि वैश्वीकरण के मद्देनजर भाषाई परिदृश्य विकसित हो रहा है. अंग्रेजी में बातचीत करने वाले लोगों की बढ़ती संख्या और प्रतिशत को स्वीकार करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि यह चिंता का विषय नहीं है. इसके बजाय, उन्होंने असली मुद्दे पर जोर दिया कि लोग तेजी से अपनी मातृभाषा में बोलने से परहेज कर रहे हैं. बहुभाषावाद के महत्त्व पर जोर देते हुए, उन्होंने कहा कि बहुभाषी होना न केवल फायदेमंद है बल्कि सतत विकास के लिए आवश्यक है. उन्होंने आगे कहा कि भाषाओं को केवल तभी संरक्षित किया जा सकता है जब समुदाय अपने दैनिक जीवन में सक्रिय रूप से उनका उपयोग करना जारी रखें. पहले दिन तीन पैनल चर्चाएं हुईं. पहले सत्र, जिसका शीर्षक ‘सतत विकास के लिए भाषाओं को महत्त्व देना’ था, का संचालन प्रो रमेश चंद्र गौड़ ने किया. पैनल में इंडियाना यूनिवर्सिटी, यूएसए से प्रो शोभना चेल्लिया; यूनिवर्सिटी आफ नार्थ टेक्सास, यूएसए से प्रो सदफ मुंशी; और यूनेस्को के नई दिल्ली कार्यालय में वरिष्ठ जेंडर विशेषज्ञ डा हुमा मसूद शामिल थीं. दूसरा सत्र पुस्तक ‘भारतीय कैलीग्राफी: राजीव कुमार की कला के माध्यम से प्राचीन ज्ञान का अनावरण’ पर चर्चा पर केंद्रित था. पैनल में दस्तकारी हाट समिति, नई दिल्ली की संस्थापक जया जेटली; प्रो रमेश चंद्र गौड़; और सांस्कृतिक उद्यमी और प्रदर्शनी क्यूरेटर रितु माथुर शामिल थीं. तीसरे सत्र में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीय भाषाएं’ विषय का अन्वेषण किया गया. हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के अध्यक्ष सुधाकर पाठक द्वारा संचालित इस सत्र में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा विभाग से प्रो बंदना झा; गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से डा पवन विजय; दिल्ली विश्वविद्यालय के रामानुजन कालेज से डा आलोक रंजन पांडे; और हंसराज कालेज से डा विजय कुमार मिश्रा के विचार शामिल थे. इस कार्यक्रम में भाषा प्रेमियों, शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं की एक महत्त्वपूर्ण सभा देखी गई, जो भाषाई संरक्षण और विमर्श के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है.