नई दिल्ली: भारतीय सेना द्वारा शासन कला, युद्ध कला, कूटनीति और शानदार रणनीति के क्षेत्र में प्राचीन भारतीय ग्रंथों से प्राप्त शासन कला और रणनीतिक विचारों की समृद्ध भारतीय विरासत की खोज के लिए ‘उद्भव‘ नाम से एक परियोजना शुरू की गई है. इस परियोजना के तहत शासन कला और रणनीतिक विचारों के क्षेत्र में भारत के समृद्ध ऐतिहासिक आख्यानों का पता लगाने का प्रयास हो रहा है. यह स्वदेशी सैन्य प्रणालियों, ऐतिहासिक ग्रंथों, क्षेत्रीय और राज्यों के ग्रंथों, विषयगत अध्ययन और जटिल कौटिल्य अध्ययन सहित व्यापक परिदृश्य पर केंद्रित है. यह अग्रणी पहल भारतीय सेना की शासन कला, रणनीति, कूटनीति और युद्ध में भारत की सदियों पुरानी बुद्धिमत्ता की मान्यता का प्रमाण है. अपने मूल में, ‘प्रोजेक्ट उद्भव‘ ऐतिहासिक और समकालीन को जोड़ने का प्रयास करता है. स्वदेशी सैन्य प्रणालियों की गहन गहराई, उनके विकास, युगों से चली आ रही रणनीतियों और सहस्राब्दियों से भूमि पर शासन करने वाली रणनीतिक विचार प्रक्रियाओं को समझना इसका उद्देश्य है. प्रोजेक्ट उद्भव का उद्देश्य केवल इन आख्यानों को फिर से खोजने तक सीमित नहीं है, बल्कि एक स्वदेशी रणनीतिक शब्दावली विकसित करना भी है, जो भारत के बहुमुखी दार्शनिक और सांस्कृतिक टेपेस्ट्री में गहराई से निहित है. कुल मिलाकर इसका उद्देश्य प्राचीन ज्ञान को आधुनिक सैन्य शिक्षाशास्त्र के साथ एकीकृत करना है. इसी के तहत भारतीय सेना ने यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के सहयोग से आज प्रोजेक्ट उद्भव के तहत ‘भारतीय सैन्य प्रणालियों का विकास, युद्ध और रणनीतिक विचार-क्षेत्र में वर्तमान अनुसंधान और भविष्य की राह‘ विषय पर एक हाइब्रिड-पैनल चर्चा भी संपन्न की.
भारतीय सेना द्वारा प्राचीन ग्रंथों पर आधारित भारतीय रणनीतियों के संकलन पर एक परियोजना 2021 से प्रगति पर है. इस परियोजना के तहत एक पुस्तक जारी की गई है जिसमें प्राचीन ग्रंथों से चुनी गई 75 सूक्तियां सूचीबद्ध हैं. हालांकि, इस पहल का पहला विद्वतापूर्ण परिणाम 2022 का प्रकाशन है जिसका शीर्षक है ‘परंपरागत‘. ‘भारतीय दर्शन… राजनीति और नेत्रीयता के शाश्वत नियम‘, ‘पारंपरिक भारतीय दर्शन… युद्ध और नेतृत्व के शाश्वत नियम‘ भारतीय सेना के सभी रैंकों द्वारा पढ़े जा रहे हैं. भारत की समृद्ध शास्त्रीय विरासत से ज्ञान सृजन को पुनर्जीवित करने का एक महत्वाकांक्षी कदम है. पैनल चर्चा के दायरे में कौटिल्य, कामन्दक और कुरल पर ध्यान केंद्रित करते हुए चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से आठवीं शताब्दी ईस्वी तक के प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन पर चर्चा शामिल थी. यह चर्चा मनोनुकूल परिणाम प्राप्त करने में सक्षम रही है, जिसका लक्ष्य भारत की पारंपरिक रणनीतिक सोच में रुचि, जुड़ाव और आगे के शोध को बढ़ावा देना था. मुख्य भाषण रणनीतिक योजना महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल राजू बैजल ने दिया. अध्यक्षता रक्षा मंत्रालय के प्रधान सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल विनोद जी खंडारे (सेवानिवृत्त) ने की. पैनलिस्टों में विद्वान, अनुभवी और सेवारत अधिकारी शामिल थे, जिन्होंने इस क्षेत्र में अत्यधिक योगदान दिया है, जिसमें सैन्य शिक्षा में एक कुशल विद्वान डा कजरी कमल भी शामिल थीं, उन्होंने कौटिल्य और भारतीय सामरिक संस्कृति के बड़े कैनवास के बारे में अपना गहन ज्ञान पेश किया. यह चर्चा प्रोजेक्ट उद्भव के तहत नियोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला में पहला कदम है. यह प्रयास भविष्य की पहलों के लिए मंच तैयार करेगा. भारतीय सेना का लक्ष्य अधिकारियों को आधुनिक परिदृश्यों में प्राचीन ज्ञान को लागू करने के लिए प्रशिक्षित करना और अंतरराष्ट्रीय संबंधों एवं विदेशी संस्कृतियों की अधिक गहन समझ की सुविधा प्रदान करना है.