नई दिल्ली: “आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचनाएं दशकों पहले जितनी प्रासंगिक थीं, आज उससे कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई हैं. इससे यह स्पष्ट होता है कि आचार्य द्विवेदी किस स्तर के भविष्यद्रष्टा थे.” यह कहना है वरिष्ठ साहित्यकार व कवि अशोक वाजपेयी का. वे द्विवेदी की 117वीं जयंती के अवसर पर साहित्य अकादेमी के सभागार में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. संगोष्ठी का विषय आचार्य द्विवेदी का एक प्रसिद्ध निबंध ‘मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है‘ था. आरंभ में अशोक वाजपेयी, प्रो सुधीर चंद्र, डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी, व्यंग्यकार सुरेंद्र शर्मा, राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी, ट्रस्ट की अध्यक्ष डॉ अपर्णा द्विवेदी एवं महासचिव नूपुर द्विवेदी पांडे ने ट्रस्ट की स्मारिका ‘पुनर्नवा‘ का लोकार्पण किया. अशोक वाजपेयी ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी पर जो सबसे बड़ा संकट हैं वह झूठ का है. हिंदी में जितनी अभद्रता होती है उतनी किसी अन्य भाषा में नहीं है. ऐसे में साहित्यकारों का दायित्व है कि वह सच और झूठ से पाठकों को अवगत कराएं. उन्होंने कहा कि संवेदनशीलता और साझी मनुष्यता साहित्य से ही संभव है.
प्रो सुधीर चंद्र ने कहा कि आचार्य द्विवेदी जैसा विद्वान हिंदी में ही नहीं किसी अन्य भाषा में भी कोई नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि आचार्य जी कहते हैं कि जिस साहित्य का उद्देश्य मनुष्यता नहीं है, वह कल्पना विलासिता है. 1948 में आचार्य जी का लिखा हुआ आज और भयावहता के साथ हमारे सामने मौजूद है. संगोष्ठी की अध्यक्षता द्विवेदी जी के शिष्य डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी ने की. उन्होंने पंडित द्विवेदी जी के सौंदर्य बोध की चर्चा की और उनकी रचना चारु चंद्रलेख के अंश का उल्लेख करते हुए कहा कि जब ज्ञान आएगा तो फिर वह सीक्रेट नहीं रहेगा. जैसे एटम बम बन जाएगा तो फिर वह सीक्रेट नहीं रह जाएगा. उन्होंने मौजूदा समय में एआई ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस‘ के खतरे की चर्चा की और कहा कि यह पत्रकार, लेखक, अध्यापक को खा जाएगा. इससे लाखों लोग बेकार हो जाएंगे, लेकिन यह सब कुछ आज के विज्ञान के लिए एक अंक भर होगा. ट्रस्ट की अध्यक्ष डॉ अपर्णा द्विवेदी ने ट्रस्ट के कार्यों और गतिविधियों की जानकारी दी. उन्होंने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया.