जयपुरः डॉ घनश्याम दास पालीवाल नहीं रहे, उन्होंने दुनियाभर की भाषाओं पर काम करते हुए भी अपनी मातृभाषा के लिए काम बहुत किया था. डॉ. पालीवाल ने उन्नीस सौ पचास के दशक के पूर्वार्ध में आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया था और सुविख्यात समालोचक डॉ. रामविलास शर्मा के निर्देशन में अमेरिका के एफ्रो-अमेरिकन/ब्लैक उपन्यासकारों पर शोध कर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की थी. उनका जीवन-कथा ग्रामीण पृष्ठभूमि से आए एक विद्यार्थी के अपनी लगन, दृढ़ परिश्रम और कठिन अध्यवसाय के बल पर शिक्षा, साहित्य और सामाजिक जगत में महत्वपूर्ण स्थान बनाने की प्रेरक कथा है . वह हैदराबाद के सी.आई. ई. एफ. एल. जिसे अब ई.एफ. एल.यू. यानी इंग्लिश एंड फॉरेल लैंग्वेजेज युनिवर्सिटी के नाम से जानते हैं, से अंग्रेज़ी भाषा शिक्षण में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त भाषा-शिक्षक थे.
डॉ घनश्याम दास पालीवाल का साहित्यिक निबंधों का संकलन 'समय की रेत पर' और पर्सनैलिटी डेवेलपमेंट से संबंधित पुस्तक 'व्यक्तित्व विकास: अवधारणाएं और आयाम' काफी चर्चित रहा. वह राजकीय कला तथा विधि महाविद्यालय,अलवर तथा डूंगर कॉलेज, बीकानेर सहित राजस्थान के विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में तीन दशक तक अंग्रेज़ी और अमेरिकी साहित्य के अध्यापन के पश्चात वे राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के रजिस्ट्रार के प्रशासनिक पद पर भी रहे. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली के लिए उन्होंने अनुवाद के स्नातकोत्तर डिप्लोमा के लिए पाठ्यसामग्री लेखन का कार्य भी किया था. वह शिक्षा से संबंधित परियोजना के सचिव के रूप में प्रो. दौलत सिंह कोठारी के साथ भी सम्बद्ध रहे थे. सेवानिवृत्ति के बाद भी वह भाषा और किताबों के प्रति समर्पित थे. जीवन के अंतिम दिनों में वह इंग्लैंड यात्रा की संस्मरण-पुस्तक की पांडुलिपि तथा अपनी नई पुस्तक 'तुलसीदास ऐज़ अ लिटरेरी क्रिटिक' की योजना पर काम कर रहे थे. पर होनी को कुछ और मंजूर था. जागरण हिंदी की ओर से उनको श्रद्धांजलि!