नई दिल्ली: असमिया के प्रख्यात लेखक एवं साहित्य अकादेमी के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य की जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर साहित्य अकादेमी ने दो-दिवसीय संगोष्ठी आयोजित की. संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने की. विशिष्ट अतिथि के रूप में वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य की सुपुत्री जूरी भट्टाचार्य उपस्थित थी. बीज वक्तव्य प्रदीप ज्योति महंत ने दिया और आरंभिक वक्तव्य असमिया परामर्श मंडल के संयोजक दिगंत विश्व शर्मा द्वारा दिया गया. समापन वक्तव्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने प्रस्तुत किया. उपस्थित प्रतिभागियों का स्वागत उत्तरीय एवं अकादेमी की पुस्तकें भेंट कर साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने किया. अपने स्वागत वक्तव्य में उन्होंने कहा कि वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य आधुनिक भारत के ऐसे प्रमुख लेखक थे, जिन्होंने असम की कई पीढ़ियों को प्रभावित किया. उन्होंने अपनी पत्रिका ‘रामधेनु‘ से असम में लेखकों की एक पूरी नई पीढ़ी तैयार की और असम के साहित्यिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया. साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष और अध्यक्ष रहते हुए भी उन्होंने अकादेमी में कई नई योजनाओं को आरंभ किया.ने अध्यक्षीय वक्तव्य में माधव कौशिक ने कहा कि वे केवल असम के ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय साहित्य के उत्कृष्ट निर्माता रहे. उनकी सृजनात्मक विविधता को देखते हुए उन्हें संपूर्ण साहित्यकार की पदवी निःसंकोच दी जा सकती है. उन्हें उत्तर-पूर्व के साहित्य को राष्ट्रीय परिदृश्य में लाने का श्रेय भी दिया जाना चाहिए. उन्होंने केवल असमिया साहित्य को ही नहीं, बल्कि उत्तरपूर्व के अन्य भाषाओं के साहित्य को प्रभावित किया है. उनको पढ़कर हम हिंदुस्तान के व्यापक समाज को समझ सकते हैं.
आरंभिक वक्तव्य में दिगंत विश्व शर्मा ने कहा कि वीरेंद्र भट्टाचार्य आधुनिक असमिया साहित्य के निर्माता और असमिया साहित्य को भारतीय साहित्य के समकक्ष खड़ा करने वाले थे. वे नए लेखकों के लिए प्रेरणादायक रहे, जिससे पूरा असमिया साहित्य लाभान्वित हुआ. विशिष्ट अतिथि जूरी भट्टााचार्य ने कहा कि उनके पिता ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, जिसके कारण उनके लेखन में आम लोगों की समस्याओं का जीवंत चित्रण है. नागा लोगो की समस्याओं पर लिखा उनका उपन्यास इसका सशक्त उदाहरण है. उन्होंने साहित्य को पूरी गंभीरता से अपने जीवन में शामिल किया और उसे जीवन यापन का आधार भी बनाया. बीज वक्तव्य देते हुए प्रदीप ज्योति महंत ने कहा कि वे स्थानीय सामाजिक मुद्दो से हमेशा संबद्ध रहे और अपने पूरे समाज को साहित्य द्वारा अंधेरे से उजाले में लेकर आए. उनका लेखकीय कैनवास इतना बड़ा है कि समाज का कोई भी संघर्ष उससे छूटा नहीं. उनका पूरा लेखन अपने समाज और अपनी भूमि के कल्याण की यात्रा है. अपने समापन वक्तव्य में अकादेमी के उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य गांधी से गहरे तक प्रभावित थे. इसीलिए उन्होंने असम की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक स्थिति को बड़े नजदीक से समझा और परिस्थितियों का अच्छे से विश्लेषण कर उसे अपने लेखन और पत्रकारिता द्वारा पाठकों तक पहुँचाया. भारतीय भाषाओं के बीच एकात्मकता के साथ ही उन्होंने नए भारत के निर्माण की चेतना का भी संचार किया. उनके लेखन में मानवीय संवेदना का ग्राफ बेहद ऊंचा है. आज का सत्र वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य की चिरस्थायी विरासत पर केंद्रित था, जिसमें विश्वास पाटिल की अध्यक्षता में कुलधर सइकिया ने ‘वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य की विरासत‘ और रत्नोत्तमा दास ने ‘समकालीन असमिया तथा भारतीय साहित्य पर भट्टाचार्य के प्रभाव‘ को रेखांकित किया. दूसरा सत्र वीरेंद्र भट्टाचार्य के सांस्कृतिक और सामाकि प्रभाव पर केंद्रित था, जिसकी अध्यक्षता करबी डेका हाजरिका ने की और विनीता बोरा देव चौधरी ने ‘भट्टाचार्य की रचनाओं में मातृत्व और अन्य सांस्कृति आख्यानों की खोज‘, मलया खाउंद ने ‘साहित्य औश्र सामाजिक परिवर्तन: असमिया चेतना को आकार देने में भट्टाचार्य की भूमिका‘ एवं मयूर बोरा ने ‘भट्टाचार्य के लेखन में सांस्कृतिक प्रतिबिंब: पहचान और सामाजिक मुद्दे‘ विषय पर अपने-अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए. संचालन उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया.