नई दिल्ली: “साहित्य से समाज नहीं वरन समाज से साहित्य है…और इसलिए साहित्य की चर्चा के साथ-साथ समाज की चर्चा जरूरी है.” इस सोच के साथ मंथन फाउंडेशन ने साहित्य अकादमी दिल्ली के सभागार में जेंडर इक्वैलिटी यानी लैंगिक समानता विषय पर संगोष्ठी का आयोजन कराया. इस संगोष्ठी के सत्र अलग-अलग विषयों पर आधारित थे. ‘एक मुट्ठी आसमां‘ नामक सत्र में पावर ग्रिड कारपोरेशन की मुख्य महाप्रबंधक और लेखिका प्रत्यक्षा, महिला भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग चैंबर की मीडिया एवं संचार परिषद की राष्ट्रीय अध्यक्ष विनीता भाटिया और मंथन फाउंडेशन की संस्थापिका सरिता निर्झरा ने हिस्सा लिया. इन्होंने कारपोरेट क्षेत्र में नेतृत्त्वकर्ता के रूप में स्त्रियों की भूमिका पर चर्चा की.
इस संगोष्ठी के ‘हम तुम और सब‘ सत्र में स्त्रियों के खिलाफ होने वाले हिंसा और जेंडर के विस्तार पर बात हुई. इस विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक ताराशंकर ने कहा कि कड़े कानून से हिंसा नहीं रुकेगी क्योंकि हिंसा सोची-समझी मानसिक स्थिति का हिस्सा है. वाणी प्रकाशन की सीईओ अदिति माहेश्वरी ने कहा कि जेंडर एक वृहद विषय है और अभी तो हम जेंडर इक्वालिटी में केवल स्त्री-पुरुष पर ही रुके हैं. क्वियर समाज की समस्याओं पर हम अभी पहुंचे ही नहीं है जिसकी तरफ जाना जरूरी है. तीसरे और आखिरी सत्र में ‘समाज और साहित्य‘ विषय पर चर्चा हुई. इस सत्र में नवीन चौधरी ने कहा कि पुरुष और महिला की बराबरी ह्यूमन के तौर पर है और बराबरी की समझ घर के परिवेश से शुरू होती है. पुरुष के भीतर सीमा का भान घर का परिवेश देता है. इसी सत्र में डा सुनीता ने कहा कि समाज में स्त्रियों के भीतर की पितृसत्ता को निकलना अधिक कठिन है क्योंकि मां एक पीढ़ी में बदलाव ला सकती है. इस संगोष्ठी में बासब चंदना ने भी शिरकत की. इस संगोष्ठी में कला मंथन मंच के सदस्यों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया.