नई दिल्ली: हर चीज में इतिहास होता है लेकिन हर चीज इतिहास नहीं होती. इतिहास को पठनीय बनाने के लिए हमें उसे आमजन की भाषा में ही बताना होगा. अतीत और वर्तमान को समझने और भविष्य को देखने की नई खिड़की खोलने वाले कई सारे प्रश्न हमारे सामने हैं, उत्तर हमें और हमारी नई पीढ़ी को ढूंढने हैं. हिंदी साहित्य के इतिहास में अपनी जगह बनाने के लिए आदिवासी कविता ने सबसे लंबी लड़ाई लड़ी है. आदिवासी समाज के गीतों में आसपास की पारिस्थितिकी में जो कुछ भी घट रहा है वह सब शामिल होता है. उनके गीतों में जीवन का राग है. उनके गीतों में प्रेम है तो विद्रोह भी है. यह बातें राजकमल प्रकाशन के 77वें स्थापना दिवस पर आयोजित विचार पर्व ‘भविष्य के स्वर‘ के वक्ताओं ने कही. स्थानीय इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ‘भविष्य के स्वर‘ का यह चौथा अध्याय था. जिसमें विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आने वाले चार वक्ताओं ईशान शर्मा, कैफ़ी हाशमी, कवि विहाग वैभव, और पार्वती तिर्की ने अपने विचार व्यक्त किए. ईशान शर्मा ने ‘आज के दौर में इतिहास‘ विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा कि हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां बहुमत द्वारा स्वीकार किए गए तथ्यों को ही इतिहास मान लिया जाता है. उन्होंने कहा कि इतिहास को लोगों तक पहुंचाने के लिए उन्हीं की भाषा में उसका उपलब्ध होना जरूरी है.
कैफ़ी हाशमी ने ‘कथा में विषय का चुनाव‘ विषय पर बात की और कहा कि जब प्रेमचंद लिखा करते थे तब भी समस्याएं छोटी तो नहीं थीं. समस्याएं हर दौर की बड़ी ही होती हैं लेकिन उस समय समस्याओं के सापेक्ष समाज सरल था. उन्होंने कहा कि एक तरफ समाज शिक्षित हुआ है, जागरूक हुआ है पहले से ज्यादा लोगों के हाथों में किताबें आई हैं. लेकिन दूसरी तरफ लेखक पर दबाव यह है कि हमें कथा और कहानी को आसान बनाना है. विहाग वैभव ने ‘इक्कीसवीं सदी की हिंदी कविता‘ विषय पर अपना वक्तव्य दिया और कहा कि इक्कीसवीं सदी की हिंदी कविता मूलत: बहुवचन संज्ञा है. हिंदी साहित्य के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि कविता में इतनी भिन्न-भिन्न सामाजिक समूह की अभिव्यक्तियां प्रकाशित हुईं. दलित आंदोलन, स्त्री आंदोलन और आदिवासी विमर्श ने समकालीन कविता ही नहीं बल्कि समूचे हिंदी साहित्य को बदलकर रख दिया है. दलित विमर्श समकालीन साहित्य की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. पार्वती तिर्की ने ‘लोकगीतों के नए पाठ कैसे हों?’ विषय पर अपने वक्तव्य में कहा कि आदिवासी समाज के गीतों में आसपास की पारिस्थितिकी में जो कुछ भी घट रहा है वह सब शामिल होता है. उनके गीतों में जीवन का राग है. उनके गीतों में प्रेम है तो विद्रोह भी है. आदिवासी समाज के लिए हर मौसम उत्सव की तरह होता है और जीवन की हर गतिविधि के लिए उनके पास अपने गीत है. यह इतने सहज है कि उनके लिए चलना ही नृत्य है और बोलना ही गीत है. राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने चौथे विचार पर्व वक्ताओं की अधिकतम आयु सीमा 30 वर्ष रखने को उपलब्धि बताया और कहा कि एक प्रकाशन समूह के रूप में हमने इस वर्ष 217 नई पुस्तकें प्रकाशित कीं और 781 पुस्तकों के नए संस्करण प्रकाशित किए हैं.