नई दिल्ली: “चैतन्य महाप्रभु जैसी दैवीय विभूतियां समय के अनुसार किसी न किसी रूप से अपने कार्यों को आगे बढ़ाती रहती हैं. श्रील भक्तिसिद्धान्त प्रभुपाद उन्हीं के संकल्पों की प्रतिमूर्ति थे. साधना से सिद्धि तक कैसे पहुंचा जाता है, अर्थ से परमार्थ तक की यात्रा कैसे होती है, श्रील भक्तिसिद्धान्त के जीवन में हमें पग-पग पर ये देखने को मिलता है.” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज प्रगति मैदान के भारत मंडपम में श्रील प्रभुपाद जी की 150वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया. प्रधानमंत्री ने आचार्य श्रील प्रभुपाद की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की और उनके सम्मान में एक स्मारक टिकट तथा एक सिक्का जारी किया. प्रधानमंत्री ने कहा कि गौड़ीय मिशन के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद ने वैष्णव आस्था के मूलभूत सिद्धांतों के संरक्षण और प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने कहा कि 10 साल से कम उम्र में प्रभुपाद जी ने पूरी गीता कंठस्थ कर ली. किशोरावस्था में उन्होंने आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ संस्कृत, व्याकरण, वेद-वेदांगों में विद्वता हासिल कर ली. उन्होंने ज्योतिष गणित में सूर्य सिद्धान्त जैसे ग्रन्थों की व्याख्या की. सिद्धांत सरस्वती की उपाधि हासिल की, 24 वर्ष की उम्र में उन्होंने संस्कृत स्कूल भी खोल दिया. नेताजी सुभाष और महामना मालवीय जैसी हस्तियों ने श्रील प्रभुपाद से मार्गदर्शन मांगा. प्रधानमंत्री ने बताया कि उनका जन्म पुरी में हुआ था, उन्होंने दक्षिण के रामानुजाचार्य की परंपरा में दीक्षा ली और चैतन्य महाप्रभु की परंपरा को आगे बढ़ाया. उनकी आध्यात्मिक यात्रा का केंद्र, बंगाल में उनका मठ था. बंगाल की भूमि ने देश को रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, श्री अरबिंदो, गुरु रवींद्रनाथ टैगोर और राजा राममोहन राय जैसे संत दिए.
प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वामी जी ने अपने जीवन में 100 से अधिक किताबें लिखीं, सैकड़ों लेख लिखे, लाखों लोगों को दिशा दिखाई. उन्होंने ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग दोनों का संतुलन जीवन व्यवस्था से जोड़ दिया. ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, पीर पराई जाने रे’ इस भजन से गांधी जी जिस वैष्णव भाव का गान करते थे, श्रील प्रभुपाद स्वामी ने उस भाव को… अहिंसा और प्रेम के उस मानवीय संकल्प को…देश-विदेश में पहुंचाने का काम किया. प्रधानमंत्री ने कहा कि इतने सारे महान संतों की उपस्थिति से भारत मंडपम की भव्यता कई गुना बढ़ गई है. इस भवन की अवधारणा भगवान बसवेश्वर के ‘अनुभव मंडप’ पर आधारित है, जो प्राचीन भारत में आध्यात्मिक संवाद का केंद्र था. ‘अनुभव मंडप’ सामाजिक कल्याण के विश्वास और संकल्प की ऊर्जा का केंद्र था. भारत मंडपम को भारत की आधुनिक क्षमताओं और प्राचीन उद्गम का केंद्र बनाने पर सरकार के फोकस को दोहराते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह नये भारत की तस्वीर प्रस्तुत करता है, जो विकास और विरासत का एक मिश्रण है जहां आधुनिकता का स्वागत किया जाता है और पहचान गर्व का विषय है. उन्होंने श्रील प्रभुपाद के सम्मान में जारी डाक टिकट और स्मारक सिक्के के लिए सभी को बधाई दी. प्रधानमंत्री ने भारत की आध्यात्मिक चेतना का स्मरण किया और कहा कि भक्ति हमारे ऋषियों द्वारा दिया गया एक भव्य दर्शन है. यह हताशा नहीं, बल्कि आशा और आत्मविश्वास है. भक्ति भय नहीं, उत्साह है. उन्होंने कहा कि भक्ति पराजय नहीं बल्कि प्रभाव का संकल्प है. भक्ति में स्वयं पर विजय पाना और मानवता के लिए काम करना शामिल है. उन्होंने कहा कि इसी भावना के कारण भारत ने अपनी सीमाओं के विस्तार के लिए कभी दूसरों पर आक्रमण नहीं किया. उन्होंने कहा कि आज का युवा अध्यात्म और स्टार्टअप दोनों का महत्त्व समझता है और दोनों में सक्षम है. प्रधानमंत्री ने कहा, इसके परिणामस्वरूप, काशी और अयोध्या जैसे तीर्थयात्राओं में बड़ी संख्या में युवा शामिल हो रहे हैं. इस अवसर पर अन्य लोगों के अलावा केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और मीनाक्षी लेखी भी उपस्थित थीं.