नई दिल्ली: रेख्ते के मशहूर शायर मीर तक़ी मीर की 300वीं वर्षगांठ पर अंजुमन तरक्की उर्दू-हिंदी द्वारा इंडिया हैबिटैट सेंटर में ‘अगले जमाने में कोई मीर भी था‘ कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस मौके पर मीर तक़ी मीर की 1500 से अधिक गजलों और चुनिन्दा रुबाइयों के संग्रह ‘चलो टुक मीर को सुनने‘ का लोकार्पण हुआ. राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित इस किताब का सम्पादन विपिन गर्ग ने किया है. लोकार्पण के दौरान मंच पर अंजुमन तरक्की उर्दू (हिंदी) के जनरल सेक्रेटरी अतहर फ़ारूक़ी, दास्तानगो मोहम्मद फ़ारूक़ी, सदफ़ फातिमा, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के प्रो अहमद महफ़ूज, किताब के सम्पादक विपिन गर्ग, राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी समेत अन्य गणमान्य मौजूद रहे.
किताब ‘चलो टुक मीर को सुनने‘ के लोकार्पण के बाद दास्तानगो महमूद फ़ारूक़ी और दारेन शहीदी ने मीर की ज़िन्दगी पर आधारित दिलचस्प दास्तान ‘दास्तान-ए-मीर‘ सुनाई. उल्लेखनीय है कि ‘चलो टुक मीर को सुनने‘ संग्रह के संपादक विपिन गर्ग ने कहा कि मीर ने शायरी की सभी विधाओं को आज़माया लेकिन उनका पसंदीदा शगल गजल-गोई है. मीर ने गजलों में तक़रीबन 14-15 हज़ार शे‘र कहे हैं. इसी के कारण मीर को ‘ख़ुदा-ए-सुख़न‘ कहा जाता है. संग्रह में मीर की गजलों के लगभग 8000 शेरों के अलावा परिशिष्ट के रूप में 15-20 गजलें हैं जो कि उनकी मसनवियों, शिकारनामों आदि से ली गई हैं तथा कुछ रुबाईयां भी इसमें दी गई हैं. मीर के हवाले से इतना बड़ा काम हिन्दी में आज तक नहीं हुआ है.