जबलपुर: चेहरे पर बिखरे हुए, दुख के धागे, गोया लिखी काली रेखाएं, धुआं-सी… जैसी मानवीय सरोकार की रचनाओं से हिंदी को समृद्ध करने वाले प्रगतिशील कविता के अग्रणी हस्ताक्षर कवि मलय का 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वे हिंदी साहित्य में मुक्तिबोध युगीन परंपरा में उनके समय के अंतिम कवि थे. डा मलय ने अविभाजित मध्यप्रदेश में विभिन्न शासकीय कालेजों में हिंदी विषय का अध्यापन किया. मलय परसाई रचनावली के संपादकों में से एक थे. मलय को नयी कविता के बाद और अकविता से पहले के कवि माना जाता है. अभी पिछले दिनों ही मलय पर केन्द्रित मूल्यांकन परक आलेखों, साक्षात्कारों एवं कुछ अन्य सामग्रियों का संकलन ‘जीता हूँ सूरज की तरह‘ नाम से प्रकाशित हुआ था. मलय के प्रकाशित 13 काव्य संग्रह हैं. उनका आलोचनात्मक कार्य ‘व्यंग्य का सौंदर्य शास्त्र‘ काफी सराहा गया. उसे व्यंग्य के क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण पुस्तक माना जाता है.
कवि मलय के निधन पर पहल के संपादक व विख्यात कथाकार ज्ञानरंजन ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि वे देश में हिंदी के सबसे वरिष्ठ व महत्त्वपूर्ण कवि थे. पहल के वे अन्यतम साथी रहे. कथाकार राजेन्द्र दानी व पंकज स्वामी ने भी मलय को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनके निधन से जबलपुर ही नहीं हिंदी साहित्य की अभूतपूर्व क्षति हुई है. मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन ने मलय के निधन पर गहरा शोक जताया है. वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय ने उनकी रचना और काम को याद करते हुए व्यंग्य आलोचना को ‘व्यंग्य का सौंदर्यशास्त्र‘ से समृद्ध करने वाला बताकर उन्हें श्रद्धांजलि दी. याद रहे कि कवि मलय को सप्तऋषि सम्मान, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद के अखिल भारतीय भवानी प्रसाद मिश्र कृति पुरस्कार, भवभूति अलंकरण सम्मान मध्यप्रदेश साहित्य सम्मेलन, चन्द्रावती शुक्ल पुरस्कार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल शोध संस्थान वाराणसी और हरिशंकर परसाई सम्मान से सम्मानित किया गया था.