प्रयागराजः इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा 'भारतीय साहित्य, समाज और सिनेमा' विषय पर परिचर्चा का आयोजन हुआ, जिसमें वरिष्ठ लेखिका डॉ विजय शर्मा ने शिरकत की. विश्व साहित्य अध्येता शर्मा ने साहित्य और सिनेमा के संबंधों पर अपनी बात रखते हुए कहा कि अधिकतर फिल्में साहित्य का सहारा लेती हैं, लेकिन दोनों अलग-अलग विधाएं हैं. साहित्यकार एकाकी होता है. साहित्यकार की कृति जब प्रकाशित हो जाती है, तो वह लेखक की न हो कर पाठक की हो जाती है. जबकि सिनेमा एक टीम वर्क होता है. फ़िल्म को बनाने के लिए एक टीम की जरूरत होती है. जिसके योगदान से फिल्म निर्माता या कहें निर्देशक सफल होता है, हां कुछ निर्देशक सर्वगुण संपन्न भी होते हैं जैसे सत्यजीत राय. फ़िल्म चलेगी या नहीं यह समाज के ऊपर निर्भर करता है. क्योंकि सिनेमा और साहित्य दोनों समाज का दर्पण होते हैं. डॉ शर्मा ने  साहित्यिक कृतियों पर आधारित कुछ फिल्मों जैसे राजी, पिंजर, शतरंज के खिलाड़ी, हेमलेट एवं कुछ लेखकों जैसे रविन्द्र नाथ टैगोर, प्रेमचंद, निर्मल वर्मा, कमलेश्वर, रेणु, राजेन्द्र यादव, सलमान रुश्दी, मन्नू भंडारी, अमृता प्रीतम, शेक्सपियर, रस्किन बॉन्ड, एलिस वाकर आदि का उल्लेख किया और कहा कि इन्होंने उदाहरण प्रस्तुत किया.
डॉ शर्मा ने टैगोर की कृतियों और शेक्सपियर की कहानी पर आधारित फ़िल्मों की चर्चा के साथ ही पी पद्मराजन की कहानी ओरमा यानी स्मृति पर आधारित फ़िल्म 'तन्मात्रा' की भी चर्चा की, जिसके निर्देशक ब्लेसी हैं. डॉ शर्मा ने कहा कि साहित्य में कितनी ताकत होती है, कितना आकर्षण होता है इसे सिद्ध करने के लिए शरतचंद्र की कृति पर आधारित देवदास जैसी एक ही फ़िल्म काफी है, जिसने दिलीप कुमार जैसे कलाकार को सिनेमा में स्थापित किया.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो कृपाशंकर पांडेय ने अपना अध्यक्षीय भाषण दिया. प्रो पांडेय ने बताया कि प्राचीन काल में दृश्य चित्रों की परम्परा मिलती है. सिनेमा का साक्ष्य हमे एल्टामेरा की गुफ़ाओं में भी मिलता है. सिनेमा हमारे लोक में भी व्याप्त है. लोक गीत, लोक कथा हमारे सिनेमा का ही अंश है. दुःख व्यक्त करते हुए प्रो पांडेय कहते हैं कि आज जिस तरह की फिल्में बन रही हैं, वह हमारी संस्कृति को नष्ट कर रही हैं. ऐसी फ़िल्मे ख़ारिज हो रहीं हैं , उन्हें दर्शक ख़ारिज कर रहें हैं. कार्यक्रम में संयोजक डॉ जीराजू, डॉ जनार्दन, प्रो शिवप्रसाद शुक्ला, डॉ अंशुमान कुशवाहा, डॉ दिनेश कुमार, शोधार्थी, परास्नातक एवं स्नातक के विद्यार्थी आदि उपस्थित रहे. संचालन डॉ मीना कुमारी मिश्रा ने किया.