आशुतोष मिश्र, जागरण गोरखपुर: उत्सव अभिव्यक्ति का, जहां मंच और वक्ता संग हर श्रोता संवादी है। सतत संवाद से समृद्ध भारतीय ज्ञान परंपरा जिसकी आत्मा हो उस आयोजन का इस तरह जीवंत होना सहज स्वाभाविक है। शुक्रवार को साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री प्रो. विश्वनाथ तिवारी और इतिहासविद् प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी ज्ञान की अधिष्ठात्री मां सरस्वती के सम्मुख आस्था के दीप जलाते हैं और योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह दो दिवसीय ‘संवादी’ के उत्सवी आलोक से नहा जाता है। उद्घाटन सत्र अपनी भाषा हिंदी की समृद्धि के अभियान ‘हिंदी हैं हम’ के नाम होता है, जिसमें प्रो. विश्वनाथ तिवारी हिंदी माने भारतवासी और भारत का अर्थ हिंदी बताते हैं। इसके बाद सत्र-दर-सत्र कार्यक्रम विस्तार लेता जाता है। साहित्य, समाज और संस्कृति पर मंथन के बाद शाम होती है, तो सभागार गीत-संगीत के रस से सराबोर हो जाता है। उद्घाटन सत्र में इतिहासविद् प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी डायस पर आते हैं, जो हिंदी के ऐतिहासिक प्रतिरोध और संघर्ष से सभागार को परिचित कराते हैं। अध्यक्षीय उद्बोधन में ऐसे हर संघर्ष की चिंता को निर्मूल सिद्ध करते हुए प्रो. विश्वनाथ तिवारी कहते हैं, हिंदी की अविरल धारा के आगे अवरोध टिक नहीं सकते हैं। ‘गोरखपुर की युवा रचनाधर्मिता मनोरंजन और समाज’ विषय पर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित अभिनेता पवन मल्होत्रा के संग प्रशांत कश्यप की रोचक बतकही होती है। इसी बीच पवन मल्होत्रा सदन के सम्मुख सवाल उठाते हैं। खूब पढ़ने के लिए प्रेरित करने के साथ अपनी छननी का उपयोग करने के लिए वह सचेष्ट कर जाते हैं। अपनी बात को वह उदाहरण देकर समझाते हैं। जैसे कहीं पढ़ें कि 26/11 की घटना के लिए आरएसएस जिम्मेदार है, तो विश्वास न करके इसे लेकर अपने विवेक से सवाल करें। युवाओं की साहित्यिक पसंद पर साहित्यकार डा. अभिषेक शुक्ल, नवीन चौधरी और सहायक आचार्य डा. अपर्णा पांडेय से प्रश्न कर भारतेंदु नाट्य अकादमी के सदस्य मानवेंद्र त्रिपाठी साहित्य से जुड़ी युवा मन की हर दुविधा और जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करते आगे बढ़ते हैं। इसी बीच संवादी की सार्थकता सिद्ध करते हुए दीर्घा से एक गंभीर प्रश्न आता है। प्रशांत कश्यप द्वारा किशोरों के लिए साहित्य सृजन न होने का सवाल उठाया जाता है। ‘शहर का सबरंग’ तब मंच पर छा जाता है, जब ‘शहरनामा’ के संपादक डा. वेद प्रकाश पांडेय, होटल विवेक के प्रबंध निदेशक अचिंत्य लाहिड़ी और ताज होटल के निदेशक शोभित मोहन दास के साथ वरिष्ठ स्तंभकार डा. हर्ष सिन्हा द्वारा संवाद का क्रम आगे बढ़ाया जाता है। इसके बाद दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन, मदनमोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जयप्रकाश सैनी और सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु की कुलपति प्रो. कविता शाह के साथ डा.आमोद का मंथन जीवंत होता है। मंच पर ‘पूर्वांचल : शिक्षा का नया केंद्र’ बनकर प्रतिष्ठित होता है। अगले सत्र में नवोदित रचनाकारों को ओपेन माइक का मंच देकर कार्यक्रम नए पड़ाव पर पहुंचता है। अब मंच पर प्रख्यात लोक गायिका चंदन तिवारी का आगमन होता है। वह वैचारिक ओज से परिपूर्ण समारोह को लोक गीतों से सजाती हैं। इस तरह अभिव्यक्ति के उत्सव में वह लोक रंग भर जाती हैं। अब संवादी अगले दिन के लिए विश्राम पाता है। अभिव्यक्ति के उत्सव का हर रंग अलबेला, यह जन मन पर चस्पा हो जाता है।