नई दिल्लीः वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया उन चुनिंदा साहित्यकारों में शामिल हैं जो अपने दौर के सृजनकर्म पर पैनी नजर रखती हैं. यही नहीं लेखक चाहे छोटा हो या बड़ा, युवा हो या स्थापित उसके लिखे पर वह टिप्पणी भी करती हैं. चाहे वह सार्वजनिक मंच हो या सोशल मीडिया. हाल ही में रेखा जैन की किताब पर ममता कालिया ने यों टिप्पणी लिखीः सूर्य प्रकाशन मंदिर बीकानेर से संस्कृतिकर्मी रेखा जैन की वृहदाकार पुस्तक आयी है, ‘यादघर‘. इसेएक संस्मरण वृत्तका उपशीर्षक दिया गया है. वास्तव में 275 पृष्ठों में लेखिका ने संस्मरण, डायरी, रिपोर्ताज और चिंतन को अभिव्यक्ति दी है. रेखा जी का लिखने का ढंग आत्मीय है. वे अपने व्यक्तित्व के विकास के साथ साथ भारतीय समाज के स्वरूप, परिवर्तन और परिष्कार का इतिहास दर्ज करती चलती हैं. आश्चर्य होता है कि थिएटर के सक्रिय पक्ष से जुड़े रह कर भी उन्होंने रंग कला की वैचारिकी के लिए इतना समय कब निकाला.

लेखिका ने खुले मन से बताया है कैसे वे संयुक्त परिवार की परम्पराप्रिय लड़की से सशक्त, स्वतंत्रचेता नारी और नेत्री की भूमिका में विकसित हुईं. शुरू में आगरा शहर के गली मोहल्लों का आत्मीय विवरण जीवंत बन पड़ा है. सन 1936 में उनका विवाह प्रसिद्ध साहित्यकार नेमिचन्द्र जैन से हुआ. उनकी शिक्षा और प्रगति में नेमिजी का अहम योगदान रहा. नेमिजी अपने परिवार के प्रथम क्रांतिकारी थे. व्यवसायी पिता के विद्रोही पुत्र नेमिजी ने प्रगतिशील विचारधारा अपनायी. आज़ादी के आंदोलन में नौकरी की और छोड़ी. अज्ञेयजी के साथ प्रतीक का संपादन किया. कविताएं लिखीं. पत्नी रेखा को इप्टा के नाटकों में अभिनय के लिए प्रेरित किया. कालांतर में रेखा जैन ने बल रंगमंच की बाकायदा स्थापना की. उन्होंने दूर देशों की यात्राएं कर बच्चों के थिएटर की समस्त संभावनाएं आत्मसात कीं. यह सब काम रातोंरात नहीं हुआ. रेखा जैन ने जीवन के सात आठ दशक इस संघर्ष में लगाये. विवरण की विवर्णता से परे यह सरल, सहज और संवाद शैली में लिखी गयी बेहद पठनीय किताब है. एक तरह से यह इप्टा का गतिशील इतिहास भी है.