वाराणसीः हिंदी दिवस पर अपनी मातृभाषा हिंदी के साथ-साथ हम दूसरी सहोदर भारतीय भाषाओं में भी कार्यक्रमों का आयोजन और उनका मान करें तो निश्चय ही इससे हमारी अपनी सभी भाषाओं को बल मिलेगा, इसी सोच के साथ काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय में हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित काव्य संध्या का आयोजन किया गया. जिसमें हिंदी, उर्दू और बांग्ला के कवितायों ने शिरकत की. कार्यक्रम के इस स्वरूप और इन सभी भाषाओं की कविताएं सुनकर प्रोफेसर पुष्पा अग्रवाल ने सराहना करते हुए कहा कि आज का हिंदी दिवस 'भाषा उत्सव' जैसा लग रहा है. हिंदी विषयक चर्चा का बड़ा सुचिंतित परिप्रेक्ष्य लेते हुए मुख्य अतिथि प्रोफेसर आशीष त्रिपाठी का कहना था कि खड़ी बोली हिंदी का लचीलापन ही रचनात्मक है. उसके भीतर भारतीय भाषाओं और बोलियों की आवाजाही से उसका सामर्थ्य बढ़ेगा. हमें अपनी बोलियों का सम्मान करना होगा. क्योंकि वे भाषा की शक्ति हैं, उन्होंने त्रिलोचन, केदारनाथ सिंह, केदारनाथ अग्रवाल जैसे कवियों की कविता की शक्ति को भोजपुरी, अवधी और बुंदेली में रेखांकित करते हुए कहा कि ये कवि अपनी कविताओं में अपनी जमीन की विशिष्टता ऐसे निर्मित करते हैं.

 

विशिष्ट अतिथि के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर बलिराज पांडेय ने कहा कि तुलसी, कबीर, जायसी, सूर को हम पढ़ते और समझते हैं, तो हम अपनी भाषा को उसकी व्यापकता और शक्ति में समझते हैं. उन्होंने भाषा का श्रम और संघर्ष से संबंध बताया. इस अवसर पर प्रोफेसर बलिराज पांडेय, प्रोफेसर आशीष त्रिपाठी सहित प्रोफेसर रिफत जमाल, आभा मिश्रा पाठक, डॉ पेशेंस फिलिप, सोमा दत्ता, प्रोफेसर विभा रानी दुबे, डॉ शबनम, उर्वशी गहलोत, प्रतिमा गौड़, राजीव मिश्रा, मुकेश कुमार, सुषमा त्रिपाठी, शेखर सिंह, ज्योति तिवारी सहित बड़ी संख्या में शिक्षकों, साहित्यकारों और छात्रों ने शिरकत की. गरिमा राय, प्रतिभा श्री, अंजलि पांडेय, सलजन कुमारी महतो आदि ने काव्यपाठ किया. महिला महाविद्यालय की प्राचार्य प्रोफेसर चंद्रकला त्रिपाठी ने अतिथियों का स्वागत किया. डॉ उर्वशी गहलोत ने आभार व्यक्त किया. संयोजन संयुक्त रूप से प्रो सुमन जैन और डॉ उर्वशी गहलोत ने किया. अंजलि अजीता और अन्य छात्राओं कार्यक्रम को संचालित किया. इस अवसर पर अतिथियों को केदारनाथ सिंह, वीरेन डंगवाल और अरुण कमल के कविता-संग्रह उपहार स्वरूप दिए गए.