दैनिक जागरण संपादक मंडल
दैनिक जागरण ज्ञानवृत्ति को लेकर दैनिक जागरण संपादक मंडल की राय और अपेक्षाएं
हिंदी में मौलिक शोध की कमी के ऐतिहासिक कारण हैं। जिस तरह से आजादी के बाद भी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को लेकर शासन और प्रशासन के स्तर पर एक उदासीनता का भाव रहा या जिस तरह से अंग्रेजी को भारतीय भाषाओं पर तरजीह दी गई उसका प्रभाव अकादमिक जगत पर भी पड़ा। कालांतर में अंग्रेजी को व्यवसाय या कारोबार की भाषा भी मान लिया गया और इस तरह का माहौल निर्मित किया गया कि हिंदी में काम-काज करनेवाले, वाणिज्यिक रणनीति बनाने वाले अंग्रजी के मुकाबले कमतर हैं। अब वक्त आ गया है कि हिंदी को सम्मान दिलाने का। दैनिक जागरण ने ‘हिंदी हैं हम’ के नाम से एक मुहिम शुरू की है जिसके अंतर्गत ही दैनिक जागरण ज्ञानवृत्ति की शुरुआत की गई है। उम्मीद है कि हिंदी में मौलिक शोध की शुरुआत से हिंदी को प्रतिष्ठा दिलाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम होगा ।
हिंदी समाज, हिंदी का जीवन जीता है लेकिन अंग्रेजी को बेहतर मानता है। इस मानसिकता को बदलने की कोशिश करनी चाहिए। हिंदी के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं। हिंदी भाषा के साथ संस्कृति भी जुड़ी हुई है, देश का सांस्कृतिक सम्मान भी कहीं ना कहीं हमारी भाषा के साथ जुड़ता है। और जब हमारा समाज इसको कमतर समझता है तो उसका असर हमारी संस्कृति पर पड़ता है। दैनिक जागरण की ये जिम्मेदारी है कि वो हिंदी को इस स्थिति से निकालने का प्रयत्न करे। दैनिक जागरण ज्ञानवृत्ति इस दिशा में एक कोशिश है। दैनिक जागरण ज्ञानवृत्ति के लिए आवेदन करनेवाले शोधार्थियों अपेक्षा है कि वो अपनी भाषा में अपने विचारों को मजबूत करने की कोशिश करें, जिससे ना केवल हमारा सांस्कृतिक सम्मान बढ़े बल्कि विश्व स्तर पर हमारे शोध को मान्यता मिले।