नई वाली हिंदी के झंडाबरदारों में से एक चर्चित लेखक सत्य व्यास का तीसरा उपन्यास ‘चौरासी’ आ रहा है। इसके पहले सत्य व्यास के दो उपन्यास बनारस टॉकीज और दिल्ली दरबार बेहद लोकप्रिय रहे और दोनों ने दैनिक जागरण बेस्टसेलर लिस्ट में अपनी जगह बनाई थी। उनका नया उपन्यास सन चौरासी के सिख दंगों पर आधारित है। इसी संदर्भ में सत्य व्यास से उपन्यास ‘चौरासी’ के प्रचार, कथानक आदि को लेकर बातचीत की है पीयूष द्विवेदी ने।
सवाल – ‘दिल्ली दरबार’ के लगभग दो साल बाद आपका तीसरा उपन्यास ‘चौरासी’ आ रहा है। इसके प्रचार में भी कुछ हद तक नयापन है। क्या कहेंगे?
जवाब – किताब खत्म करने के बाद जब प्रचार की योजना पर काम होता है तब ही यह तय किया जाता है कि इसका स्वरूप क्या हो। प्रचार –प्रसार के टूल्स और तरीके कहानियों पर ही निर्भर करते हैं। जो बातें दिल्ली दरबार के लिए कामयाब हुईं जरूरी नहीं कि वही बातें चौरासी के लिए भी सफल हो। इसीलिए नयी कोशिशें करता रहता हूँ। दूसरी बात, चुकी अभी किताबें भी कम ही लिखी हैं इसलिए हो सकता है कि प्रचार में नयापन दिखता हो। यही सवाल अगर दसवीं किताब के बाद हो तो मानूँगा कि कुछ हासिल हुआ।
सवाल – ‘बनारस टॉकीज’ और ‘दिल्ली दरबार’ ने आपकी छवि हल्के–फुल्के विषयों वाले एक मनोरंजक लेखक की बनाई है। क्या ‘चौरासी’ जैसे गंभीर विषय को उठाना उस छवि से बाहर आने की कोशिश है?
जवाब – सायास तो नहीं अनायास यह जरूर हो सकता है। चौरासी एक कहानी के रूप में लिखकर छह सात साल पहले ही रखी थी। मगर उस वक्त दूसरे जरूरी कामों की वजह से इसे विस्तार नहीं दे पाया था। फिर ‘बनारस टॉकीज़‘ और ‘दिल्ली दरबार‘ हो गए तो यह उपन्यास तीसरा हो गया।
एक और वाकया याद आता है। एक पाठक की एक बात जेहन में रह गयी थी। उन्होंने कहा था कि सर! आप हंसाते बहुत अच्छा हैं। मुझे लगा अबकी दफ़ा रुला कर देखने की कोशिश करनी चाहिए।
सवाल – आपके पिछले उपन्यासों में खूब हास्य था, इस गंभीर विषय में कितना हास्य मिला पाए आप?
जवाब – यह रूमान के त्रासद हो जाने की कहानी है। यह प्रेम, बलवे और विस्थापन की कहानी है। इसमें हास्य के लिए स्थान नहीं बना पाया।
सवाल – यह विषय राजनीतिक है, आपकी कहानी में राजनीति को कितनी जगह दी गयी है?
जवाब – चौरासी के विषय से राजनीति को अलग कर पाना दूध से पानी को निकालने जैसा दुष्कर है। मैंने फिर भी कोशिश की है कि इसे अराजनैतिक प्रेम कहानी की तरह ही लिखूं। बाकी तो पाठक निर्णायक है।
सवाल – नयी हिंदी के ज्यादातर लेखकों की भाषा में अंग्रेजी शब्दों का धड़ल्ले से प्रयोग मिलता है। हालांकि आप देसज शब्दों को प्रधानता देते हैं। लेकिन नयी हिंदी में अंग्रेजी शब्दों का निर्बाध प्रयोग क्या ठीक है?
जवाब – इस सवाल के जवाब के लिए मैं आपके माध्यम से पाठकों से अनुरोध करूँगा कि इस बाबत कोई भी हत्तमी राय चौरासी पढ़ने के बाद ही कायम की जाए।
सवाल – नयी हिंदी में भाषाई ताजगी तो है, लेकिन विषय–वस्तु में बहुत नयापन नहीं है। क्या ‘चौरासी’ से इस स्थिति में बदलाव की उम्मीद करें?
जवाब – मुझे उम्मीद है कि न सिर्फ ‘चौरासी‘ बल्कि ‘औघड़‘ पढ़ने के बाद नए लेखक नए कथानक लेकर आएंगे और पाठक कहानियों, कथाओं की विविधिता से लाभान्वित होंगे।