नई दिल्लीः वाणी प्रकाशन द्वारा ऑक्सफ़ोर्ड बुकस्टोर में रचनाकार गगन गिल की तीन नई पुस्तकों ‘इत्यादि‘, ‘मैं जब तक आयी बाहर‘ और देह की मुँडेर पर‘ का लोकार्पण एवं परिचर्चा आयोजित की गई, जिसमें लेखक हरीश त्रिवेदी, प्रयाग शुक्ल, मंगलेश डबराल एवं शिक्षाविद सुकृता पॉल कुमार ने वक्तव्य दिए. सुकृता पॉल कुमार के अनुसार गगन गिल की रचनाओं में आपको एक यात्रा देखने को मिलेगी – छोटे से बड़े की यात्रा. यहां शब्द अपने आप को ख़त्म करते जाते हैं और बच जाता है सिर्फ़ अनुभव. उनके अनुसार कविता अनुभव को जन्म देने की कला है, और गगन गिल ने अपनी कविताओं में वह बखूबी किया है. प्रयाग शुक्ल के अनुसार गगन को पढ़ते समय उनके स्वर की ओर ध्यान जाता है. हर लेखक अपनी रचनाओं में शब्दों को नहीं शब्दातीतों को ही ढूंढता हुआ प्रतीत होता है. उनका कहना था कि आज के समय में आपको अगर किसी तक अपनी बात पहुंचानी है तो आपको जोर से कहना होगा. गगन की रचनाओं में अवसाद है, पीड़ा और दुख को लेकर विमर्श है, लेकिन ज्योतिरेखा की एक चाह भी है. गगन गिल की रचनाएं एक घेरा बनाती हैं और पाठक को उस स्थान पर ले जाती हैं जहां वह जाना चाहता है. इस हिंसक समय में उनकी कविताएं संवेदनशील व्यक्ति को विचलित करती हैं.
मंगलेश डबराल ने गगन गिल की कविताओं को स्त्री दृष्टि की कविताएं बताया. उनके अनुसार रचनाओं में एक प्रतिरोध भी देखने को मिलता है. उन्होंने कहा कि गगन गिल की कविताएं उपस्थिति और अनुपस्थिति के बीच की कविताएं हैं. उनकी कविताओं में घाव है आर्तनाद है, परंतु रक्तपात नहीं है. हरीश त्रिवेदी के अनुसार गगन गिल समय-समय पर अपने एकांत में चली जाती हैं और वहां से कुछ विशिष्ट लेकर लौटती हैं. देह की मुंडेर शीर्षक अपने आप में एक वैश्विक दृष्टि की ओर संकेत है. गगन की लेखनी काव्यात्मक है, पर भावुक नहीं है. उनका स्वर निर्भीक है. इत्यादि साधारण स्मृति आख्यान से अलग है, यह इनकी आध्यात्मिक आत्मकथा है. वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने कहा कि ये बौद्धिक स्वर में हलचल पैदा करने वाले शब्द हैं. गगन गिल, निर्मल वर्मा के शब्द समयातीत हैं और वाणी प्रकाशन उनके लिए गौरवान्वित है. गगन गिल ने कार्यक्रम में अपनी रचनाओं का पाठ किया. धन्यवाद ज्ञापन वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी ने और संचालन प्रधान संपादक रश्मि भारद्वाज ने किया.