नई दिल्आली, 5 सितंबर, आज शिक्षक दिवस है. मदर्स डे, फादर्स डे, डॉटर्स डे से  अलग बड़ा वाला दिन. समूचा सोशल मीडिया, फेसबुक और गूगल अटा पड़ा है शिक्षकों की याद में. यह एक अच्छी बात है कि हम भारतीयों को 'गुरु पुर्णिमा' और 'शिक्षक दिवस' के रूप में दोबार अपने गुरुजनों को याद करने और उनका आभार प्रकट करने का मौका मिलता है. हिंदी और हिंदी साहित्य ही नहीं समस्त भारतीय साहित्य का एक बड़ा हिस्सा गुरुजनों ने समेट रखा है. यह सभी जानते हैं कि यह दिन भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति और संस्कृत के महानवेत्ता सर्वपल्ली राधाकृष्णन की याद में उनके जन्म दिन पर मनाया जाता है. पर हममें से कितने लोग डा.सर्वपल्ली राधा कृष्णनन के जीवन व्यक्तित्व से प्रेरणा लेते हैं? कितने लोग राधाकृष्णन के व्यक्तित्व-कृतित्व को जानते हैं? यह शिक्षा जगत में एक त्योहार जैसा हो गया है, पर हम यह क्यों नहीं सोचते कि राधाकृष्णन के बाद उनके समान दूसरा कोई शिक्षक, व्यक्तित्व देश में पैदा क्यों नहीं हुआ? औपनिवेशिक गुलामी से जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब नेहरू ने नेतृत्व, पटेल ने कूटनीति और राधाकृष्णन ने दार्शनिक अवदान दिया. उन्होंने एक राष्ट्र के रूप में भारत की सतता का रहस्य दुनिया को समझाया कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश नहीं, पंथनिरपेक्ष देश है.  उन्होंने संविधान सभा में कहा था, "स्वराज सहिष्णु प्रकृति का विकास है. असहिष्णुता हमारे विकास की सबसे बड़ी बाधा है, एक दूसरे के विचारों के प्रति सहिष्णु रहना ही विकास का एक मात्र रास्ता है."

 

डॉ. राधाकृष्णन का 5 सितंबर 1888 को हुआ. पिता चाहते थे कि बेटा मंदिर का पुजारी बने, पर नियति ने उन्हें राष्ट्र का पुजारी बना दिया. वे अध्यवसाई विद्यार्थी, उत्कृष्ट शिक्षाविद और महान अध्यापक थे. दर्शन और साहित्य के गंभीर शोधार्थी, प्रबुद्ध मीमांसक, अद्भुत लेखक और शानदार वक्ता. राजनीति के क्षेत्र में सौम्य प्रशासक, सफल कूटनीतिज्ञ और गरिमामय नेतृत्वकर्ता. वह सनातनी थे और हिंदू रीति- रीवाजों के प्रति अटूट आस्थावान, लेकिन पढ़े पाश्चात्य स्कूल में. पश्चिमी शिक्षा ने उन्हें ईसाई धर्म को समझने का मौका दिया और उन्होंने पाश्चात्य की कसौटियों पर हिन्दू धर्म की विराटता सिद्ध कर दी. वह अंग्रेजी, संस्कृत के प्रकांड थे और हिंदी सहित कई भारतीय भाषाओं के ज्ञाता थे. 1911 में उन्होंने अपने लेख 'इपिक्स आफ भगवद्गीता और कांट' लिखकर एक तरह पश्चिम के इस महान दार्शनिक को चुनौति दे डाली. 'हिन्दू व्यू आफ लाइफ' उनके भाषणों पर छपी पुस्तक थी. नाईटहुड और भारत रत्न जैसी उपाधि से सम्मानित डॉ राधाकृष्णन ने आंध्र विश्वविद्यालय, आक्सफोर्ड और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शिक्षा प्रदान करने के साथ ही कुलपति भी रहे. शिक्षा के क्षेत्र में उनका नाम 1931 से 1935 तक लगातार पांच बार नोबेल सम्मान के लिए नामांकित हुआ. वह संविधान सभा के सदस्य, फिर उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति बनने पर उनकी लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि बर्ट्रेंड रसेल ने कहा था, "प्लेटो यूटोपियाई थे, लेकिन भारत दुनिया का ऐसा देश है जिसने प्लेटो के दार्शनिक राजा को व्यवहार में उतार दिया. मैं भारत की जय बोलता हूं".  डॉ. राधाकृष्णन केवल चौथाई वेतन लेते थे. उनकी सादगी, साहस और सरलता एक मिसाल है. यह उन्हीं की क्षमता थी कि वह चीन के नेता माओत्से तुंग और स्टालिन जैसे तानाशाह कड़क शासकों का ही नहीं ईसाई धर्मगुरू पोप तक के गालों को थपथपा सकते थे.

 जागरण हिंदी की ओर से देश के इस महान सपूत को शत-शत नमन के साथ ही देश के समस्त शिक्षकों और छात्रों को 'शिक्षक दिवस' की बधाई!