जामताड़ा: झारखंड के जामताड़ा ज़िला में महान समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की 200 वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में दो दिवसीय आयोजन किया गया। इस स्मृति आयोजन में बिहार , झारखंड के अलावा उड़ीसा और बंगाल के बुद्धिजीवी व विद्वान शामिल हुए। दो दिनों के इस कार्यक्रम का आयोजन विद्यासागर स्मृति रक्षा समिति, नंदनकानन और एशियाटिक सोसायटी, कोलकाता द्वारा किया गया था।
कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती विद्यामंदिर के स्कूली बच्चों द्वारा गायन से की गई। स्वागत वक्तव्य एशियाटिक सोसायटी के प्रकाशन सचिव रामकृष्ण चटर्जी ने दिया। बीज वक्तव्य विद्यासागर विश्विद्यालय, मेदिनीपुर के वाइस चांसलर स्वप्न प्रमाणिक ने दिया । उद्घाटन सत्र को प्रो आलोक क्रांति भौमिक ने भी संबोधित किया । विषय प्रवेश विद्यासागर स्मृति रक्षा के सचिव अरुण कुमार बोस जबकि धन्यावद ज्ञापन समिति के वाइस चेयरमैन कैप्टन दिलीप सिन्हा ने दिया। विद्यासागर ने आने जीवन के अंतिम 18 वर्ष इसी जगह पर व्यतीत किये। यहां वे लगभग 1873-74 के आसपास आये और मृत्युपर्यंत यहीं रहे। वो भवन यहां तक कि वो पलंग जिसपर वो सोया करते थे, आज भी सुरक्षित है। लगभग साढ़े तीन एकड़ के इस प्रांगण में आम का वो विशाल घना पेड़ भी है जिसे, स्थानीय लोगों के अनुसार, स्वयं विद्यासागर ने आने हाथों से लगाया था। विद्यासागर जब तक गंभीर रूप से बीमार होकर यहां से कोलकाता ले जाये जाने के पूर्व यहीं रहकर आसपास के आदिवासी गाँवो के बीच शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सहायता कार्य चलाते रहे। इसके लिए उन्होंने विशेषतौर पर होम्योपैथी सीखा।
उनकी मौत के बाद करमाटांड़ वाले घर को बेच दिया गया। विभिन्न हाथों अब बिकते ह्यूए ये संपत्ति कोलकाता के मालिक परिवार के हाथ लगी। मलिक परिवार को इस बात का भान था कि इस मकान का जुड़ाव ईश्वरचन्द्र विद्यासागर से है फलतः उन्होंने इसे सुरक्षित रखते हुए विकसित करने का प्रयास किया। आखिरकार बिहार बंगाली समिति ( बिहार व झारखंड संयुक्त) के प्रयास से ये मकान व भूखंड 1974 में वापस पाया जा सका।
पहले सत्र ' विद्यासागर और करमाटांड़' को संबोधित करते अंग्रेजी मासिक 'बिहार हेराल्ड' के संपादक विद्युतपाल ने हिंदी में दिये गए अपने संबोधन में कहा "बंगाल में नवजागरण की जो जनोन्मुख धारा है, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने करमाटांड़ में उसे आगे बढाया। यहां वो आराम करने आये थे लेकिन नवजागरण पुरुष ने अपने आराम के दौरान भी होम्योपैथी ज्ञान का उपयोग उनके इलाज में किया। आदिवासियों के बीच स्कूल खोले। कुछ लोग कहते हैं कि ऐसा उन्होंने ब्रिटिश सरकार की प्रेरणा व तालमेल से किया जबकि सच ऐसा नहीं है। जब उन्हें नौकरी थी और उनकी द्वारा लिखित पाठ्य पुस्तकों से भी खासे पैसे भी आ रहे थे उन्होंने अपने गांव वीरसिंघो में स्कूल ही नहीं खोला बल्कि छात्रों के लिए स्लेट, कॉपी, पेंसिल, पुस्तकों आदि के इंतजाम भी किये।" विद्यासागर द्वारा वैज्ञानिक व तार्किक चिंतन को बढ़ावा देने वाले पहलू को रेखांकित करते हुए बिद्युतपाल ने कहा " ये ईश्वरचन्द्र विद्यासागर थे जिन्होंने देश में सोचने समझने के तार्किक व वैज्ञानिक चिंतन पर जोर दिया।" इस दौरान विद्यासागर पर एक संग्रहालय का भी उद्घाटन किया गया।