प्रेमचंद के बाद हिंदी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में से एक यशपाल का जन्म 3 दिसंबर, 1903 को पंजाब के फ़िरोजपुर छावनी में हुआ था. अपने विद्यार्थी जीवन से ही यशपाल क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े, इसके परिणामस्वरुप अधिकांश समय लम्बी फरारी और जेल में व्यतीत करना पड़ा. इसके बाद इन्होने साहित्य को अपनाया. यही वजह है कि  यशपाल की कहानियों में सर्वदा कथा रस के साथ-साथ वर्ग-संघर्ष भी मिलता है. मनोविश्लेषण और तीखा व्यंग्य इनकी कहानियों की विशेषताएं हैं. यशपाल के लेखन की प्रमुख विधा उपन्यास है, लेकिन अपने लेखन की शुरूआत उन्होने कहानियों से ही की. उनकी कहानियां अपने समय की राजनीति से उस रूप में आक्रांत नहीं हैं, जैसे उनके उपन्यास. नई कहानी के दौर में स्त्री के देह और मन के कृत्रिम विभाजन के विरुद्ध एक संपूर्ण स्त्री की जिस छवि पर जोर दिया गया, उसकी वास्तविक शुरुआत यशपाल से ही होती है.
यशपाल ने सालों तक 'विप्लव' पत्र का संपादन-संचालन किया. उनकी प्रमुख कृतियों में, देशद्रोही, पार्टी कामरेड, दादा कामरेड, झूठा सच तथा मेरी, तेरी, उसकी बात (सभी उपन्यास), ज्ञानदान, तर्क का तूफ़ान, पिंजड़े की उड़ान, फूलो का कुर्ता, उत्तराधिकारी (सभी कहानी संग्रह) और सिंहावलोकन (आत्मकथा) शामिल है.  'मेरी, तेरी, उसकी बात' पर यशपाल को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला. साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा वह सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, 'देव पुरस्कार' और मंगला प्रसाद पारितोषिक से भी सम्मानित किया गया था। जागरणहिंदी की ओर से उनको नमन