[राजू मिश्रडॉ.योगेश प्रवीन लखनऊ का ऐसा जीवंत स्मारक थे, जिससे जब जो चाहे पूछ लो, लिखवा लो। वस्तुत: वह अवध की साहित्यिक दौलत थे। लखनऊ के गजेटियर में भी शायद उतनी जानकारियां शामिल नहीं होंगी जितनी उन्हें जुबानी रटी थीं। जाहिर है वह कई भाषाओं के जानकार भी थे। किसी ने लिफ्ट दी तो ठीक नहीं तो निरंतर पैदल चलना उन्हें ज्यादा मुनासिब लगता था। जब कभी जी चाहा तो रिक्शे की सवारी जरूर गांठ लेते थे। यही वजह रही कि उनकी काया हमेशा छरहरी बनी रही। लखनवी रवायत, तीज-त्योहार और परंपरा का वह खास ख्याल रखते थे। रकाबगंज की तंग गलियों में बसा मोहल्ला गौसनगर दरअसल दो लोगों के दम पर जाना गया। एक थे मशहूर शायर कृष्ण बिहारी नूर और दूसरे योगेश प्रवीन। योगेश प्रवीन के दम पर गौसनगर की गलियों में रौनक बनी रहती थी। विद्यांत कालेज में अध्यापकी और लेखन यही उनके सर्वप्रिय शगल थे। 1986 में दैनिक जागरण में जब शहर अपना शहर परिशिष्ट निकालने की योजना बनी तब पहली मर्तबा उनसे मिलना हुआ था। बाद में तो वह संरक्षक जैसे हो गए। अपनत्व भाव में लोग उन्हें दाऊ कहते थे। राइटिंग भी खूब थी, जैसे लिखा नहीं, कसीदेकारी की है। बात बेबात बड़प्पन दिखाना उनकी खुसूसियत थी। कई फिल्मों में संवाद से लेकर पटकथा तक उन्होंने लिखी। फिल्मी दुनिया में भी उनके खासे प्रशंसक थे। वस्तुत: उमराव जान अदा की कामयाबी के पीछे असल दिमाग और परिश्रम दाऊ का ही था। एक रोज दाऊ सुबह-सबेरे घर पधार गए। वह अक्सर आते रहते थे इसलिए अचरज नहीं हुआ। बहुत खुश थे। 'पद्यश्री मिलने जा रही हैयह कहते हुए उन्होंने मिठाई का डिब्बा आगे बढ़ा दिया। हमने कहा कि इसका क्या मतलब? दाऊ-'बोले यही आनंद है पंडित जी, खास आपके लिए नेतराम के यहां से बनवाई है, जल्दी मिलती नहीं कहीं।Ó डिब्बा खोला तो देखा वाकई नायाब थी मिठाई। परवल की मिठाई थी वह। वाकई गजब थे दाऊ। त्रासद पक्ष यह है कि ताजिंदगी लखनऊ के लिए न्योछावर लुटाते रहे दाऊ को आखिरी वक्त में एंबुलेंस तक नहीं नसीब हो सकी। जैसे-तैसे उन्हें अस्पताल ले जाया गया। तब तक दाऊ महाप्रयाण कर चुके थे।

15 मार्च  को दाऊ ने कोविड की वैक्सीन लगवाई थी। आज उन्हें दूसरी डोज लगनी थी, लेकिन दूसरी डोज लगने से पहले ही उन्होंने इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया।

 

वही ठुमरी, कथक और तिहाई की चोट

सितारों भरे आंचल, कटारी की गोट

चिकन के करिश्मे सजाए बदन

जरीदार जलवे, जवां अंजुमन

अपने दिल-ए-नाशाद को आ शाद करें हम

आओ के लखनऊ को जरा याद करें हम।