नई दिल्लीः हिंदी अगर आज राजभाषा है तो इसके पीछे अनेक हिंदी सेवियों की कठिन तपस्या का हाथ है. उन्हीं में से एक महत्त्वपूर्ण नाम राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन का भी है. 1 अगस्त को उनकी जयंती पर हिंदी भवन दिल्ली में इक्कीसवें हिंदी रत्न सम्मान की घोषणा की गई है. इस साल यह सम्मान त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी, बालस्वरूप राही, विजय कुमार मल्होत्रा, डॉ राकेश टंडन की मौजूदगी में प्रख्यात भाषाविद अरविंद कुमार को दिया जाएगा. अरविंद कुमार हिंदी के प्रथम समान्तर कोश (थिसारस) के संकलन व प्रकाशन के लिए जाने जाते हैं. अभी हाल में उन्होंने एक अद्वितीय द्विभाषी थिसारस तैयार किया. द पेंगुइन इंग्लिश-हिंदी/हिंदी-इंग्लिश थिसॉरस एंड डिक्शनरी अपनी तरह एकमात्र और अद्भुत भाषाई संसाधन है. यह किसी भी शब्दकोश और थिसारस से आगे की चीज़ है और संसार में कोशकारिता का एक नया कीर्तिमान स्थापित करता है. इतना बड़ा और इतने अधिक शीर्षकों उपशीर्षकों वाला संयुक्त द्विभाषी थिसारस और कोश इस से पहले नहीं छपा था. सम्मान समारोह का संचालन जानीमानी उद्घोषिका सरला माहेश्वरी करेंगी.

इस पुरस्कार का महत्त्व इसलिए भी है कि राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने हिंदी को देश की राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता होने के साथ-साथ पुरुषोत्तम दास जी हिंदी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे. उन्होंने 10 अक्टूबर, 1910 को नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी के प्रांगण में हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की. इसी क्रम में 1918 में उन्होंनेहिंदी विद्यापीठऔर 1947 मेंहिंदी रक्षक दलकी स्थापना भी की. राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन के प्रयासों से हिंदी साहित्य सम्मेलन के इंदौर अधिवेशन में स्पष्ट घोषणा की गई कि अब से राजकीय सभाओं, कांग्रेस की प्रांतीय सभाओं और अन्य सम्मेलनों में अंग्रेजी का एक शब्द भी सुनाई न पड़े. साल 1961 में हिंदी भाषा को देश में अग्रणी स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाने के लिए राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानभारत रत्‍‌नसे विभूषित किया गया.