जयपुरः स्थानीय रोटरी क्लब में प्रबोध कुमार गोविल द्वारा संचालित राही सहयोग संस्थान द्वारा 'शब्द मंथन' का आयोजन किया गया, जिसमें साहित्य की अनेक विधाएं एकसाथ सुनने को मिली जैसे कहानी, लघु कहानी, कविताएं, क्षणिकाएं, दोहे, गीत, यात्रा वृतांत, मुक्तक आदि. कई वरिष्ठ और नवोदित रचनाकारों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की. अटलानी जी की कहानी से पता चला कि व्यक्तिगत अनुभवों को कैसे लिख सकते हैं , लेखन के माध्यम से भ्रष्टाचार के खिलाफ सशक्तरूप से आवाज उठाई जा सकती है. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल के यात्रा वृतांत ने बताया कि कैसे किसी जगह का सजीव चित्रण खींचा जा सकता है. रजनी मोरवाल कहानी एकसाथ कई विचारशील मुद्दे समेटे हुई थी. दामोदर खडसे ने पुणे के पास 'पुस्तकांचे' गांव के बारे में रोचक जानकारी दी, जो एक साहित्यक लाइब्रेरी के रूप में बसा है. पुणे में ही 'बुक कॉफ़ी कैफ़े' के बारे में भी उन्होंने बताया. भाग्यम शर्मा की शानदार कहानी सुनने को मिली, नूतन गुप्ता ने छोटी कविताएं सुनाईं, तो हिमांशु जोनवाल ने गीत सुनाया. युवा कवि रविन्द्र गुर्गाई ने रिश्तों और पतंग की तुलना के माध्यम से शानदार रचना प्रस्तुत की.

दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने नवोदित रचनाकारों के मार्गदर्शन के लिए बहुत ही उत्तम और सुंदर सुझाव दिया कि आलोचनाओं को सकारात्मक रूप से देखें और उन्हें गंभीरता से लें. प्रबोध कुमार गोविल ने कहा कि रचना लिखने के बाद उसे अपने ऐसे विश्वसनीय मित्रों को पढ़वाएं, जो आपको उसकी कमियां बताएं. नंद भारद्वाज ने बताया कि कविता कैसे लिखी जानी चाहिए. कविता में 60 % अंश संवेदनाओं का होना चाहिए , कविताओं में पूर्व में कही गई बातों का दोहराव नहीं होना चाहिए बल्कि कुछ नया संदेश होना चाहिए. रचना में जहां तक संभव हो एक ही भाषा के शब्दों का उपयोग करें , कठिन शब्दों का कम से कम उपयोग हो. रचना को लिखते ही सुनाने या छपवाने की जल्दी नहीं करें बल्कि कुछ समय तक खुद ही बार बार पढ़ें. उसमें सुधार अपने आप होते जाएंगे. कार्यक्रम की अध्यक्षता तुलसी मानस संस्थान के अध्यक्ष राम लक्ष्मण गुप्ता ने की. मुख्य अतिथि के रूप में महाराष्ट्र साहित्यिक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ दामोदर खड़से मौजूद थे. अन्य अतिथियों में नन्द भारद्वाज, गोविन्द माथुर, भगवान अटलानी, दुर्गा प्रसाद अग्रवाल, रजनी मोरवाल खास थीं. मंच संचालन 'मुखर' कविता व चित्रेश रिझवानी किया.