नई दिल्लीः प्रख्यात आलोचक श्रीभगवान सिंह का कहना है कि महात्मा गांधी के जीवन मूल्यों को बनाने में साहित्य और किताबों का बड़ा हाथ था. साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित कार्यक्रम शृंखला 'एक शाम आलोचक के साथ' के अंतर्गत 'साहित्य, कला एवं सत्याग्रह' विषय पर व्याख्यान देते हुए गांधीवादी चिंतक एवं समालोचक श्रीभगवान सिंह का कहना था कि सत्याग्रह की वैचारिकी बनाने में साहित्य का अध्ययन ही गांधी के काम आया था. गांधी का सत्याग्रह सत्य और अहिंसा पर टिका था और यही वह भारतीय साहित्य में देखना चाहते थे. गांधी साहित्य को सत्य के प्रचारक के रूप में देखना चाहते थे. उन्होंने नंदकिशोर आचार्य के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि गांधी के लिए साहित्य संवेदनात्मक सत्याग्रह था. श्रीभगवान सिंह ने गांधी द्वारा तुलसीदास और उनकी रामचरित मानस को पसंद करने के कई उदाहरण देते हुए कहा कि वे साहित्य में भावुकता के विरोधी थे. उनके लिए कृष्ण का पुरुषार्थ वाला चरित्र महत्त्वपूर्ण था. वे हमेशा देश के साहित्य को समझने की इच्छा रखते थे.
श्रीभगवान सिंह ने इस बात पर दुख प्रकट किया कि हिंदी साहित्य में गांधी जी के विचारों को गहनता से समझने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं हुए हैं. उन्होंने 'कला, कला के लिए' की अवधारणा का विरोध किया. वे भारतीय कला को ऊंचाई पर ले जाने की पैरवी करते थे. याद रहे कि चिंतक, आलोचक श्रीभगवान सिंह ने 'शकुन्तला का द्रोह', 'औरत की आवाज', 'यमराज की अदालत', 'सुकरात मरता नहीं' जैसे नाटकों के अलावा 'हिंदी साहित्य और नेहरू' विषय पर शोधग्रंथ लिखा और 'आधुनिकता और तुलसीदास', 'आलोचना के मुक्त वातायन', 'गांधी और हिंदी राष्ट्रीय जागरण', 'गांधी और दलित भारत जागरण' जैसी आलोचना पुस्तकें लिखी हैं. इस कार्यक्रम में प्रख्यात चिंतक देवी प्रसाद त्रिपाठी, साहित्य अकादमी के हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक चित्तरंजन मिश्र, हिंदी परामर्श मंडल के सदस्य सुरेश ऋतुपर्ण, कवि एवं आलोचक ओम निश्चल, कुमार नरेंद्र सिंह, अनिल मिश्र सहित कई महत्त्वपूर्ण साहित्यकार एवं साहित्य प्रेमी उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन हिंदी संपादक अनुपम तिवारी ने किया.