नई दिल्ली: विश्व पुस्तक मेला में पुस्तक प्रेमियों का उत्साह इस बार कहीं अधिक दिख रहा. मेला भी पिछले वर्षों की तुलना में अधिक व्यवस्थित है. बड़े-छोटे हर पुस्तक स्टाल पर विमोचन और चर्चा का क्रम जारी है. हिंदी के प्रकाशकों में गीता प्रेस, वाणी, राजकमल प्रकाशन, प्रभात प्रकाशन के साथ अद्विक, सर्वभाषा ट्रस्ट और सेतु प्रकाशन के यहां पूरे दिन कार्यक्रम चलता ही रह रहा है. राजकमल प्रकाशन के स्टाल पर जावेद अख़्तर की ‘सीपीयाँ’, कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा ‘दियासलाई’, गुलज़ार के गीतों का मजमूआ ‘गुनगुनाइए’, मेय मस्क की आत्मकथा का हिन्दी संस्करण ‘जब औरत सोचती है’, गीतकार शैलेन्द्र के गीतों पर केन्द्रित यूनुस ख़ान की किताब ‘उम्मीदों के गीतकार : शैलेन्द्र’, ज्यां द्रेज़ संग लुक लेरुथ का उपन्यास लाइन पार, अपूर्वानंद की किताब ‘कविता में जनतंत्र’, रोमिला थापर की किताब ‘असहमति की आवाज़ें’ जलसाघर के मुख्य आकर्षण है. इस प्रकाशन समूह ने अपने मंच ‘जलसाघर’ को विश्व पुस्तक मेला की थीम गणतंत्र@75 को ध्यान में रखते हुए देश की गणतांत्रिक यात्रा से संबंधित पुस्तकों, भारतीय संविधान की प्रस्तावना और अनेक भारतीय भाषाओं में लिखी गई राजकमल प्रकाशन समूह की टैगलाइन ‘साथ जुड़ें साथ पढ़ें’ से सजाया गया है.साथ ही, 21वीं सदी के 25 वर्षों में राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित विविध विधाओं की 25 किताबों को जलसाघर की एक दीवार पर विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया है.

इसी तरह विश्व पुस्तक मेला में वाणी प्रकाशन ने 9 दिन 9 फ़नकार के अंतर्गत निदा फाजली के नाम पर कार्यक्रम किया. इस उपलक्ष्य में निदा फाजली के जीवन और उनके लेखन-दर्शन पर चर्चा हुई.कार्यक्रम में सुनील अटोलिया, वेंकटेश कपिल दाधीच व राजेंद्र राजन चर्चा में उपस्थित हुए. वेंकटेश कपिल ने निदा फाजली की रचनाओं का सस्वर वाचन करके कार्यक्रम में चार-चांद लगाए. सुनील अटोलिया व राजेंद्र राजन ने निदा फाजली को स्मरण करते हुए उनके रचनाकर्म पर प्रकाश डाला. सुनील अटोलिया ‘कालू’ की पुस्तक ‘गंगा जमुनी तहजीब’ की 2 पुस्तकों का सेट का लोकार्पण हुआ. इस सेट में एक पुस्तक ‘दोहे मोहे सोहे’ और दूसरी ‘मैं बहर में हूं’ शामिल हैं. इस पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम में मशहूर साहित्यकार राजेंद्र राजन भी उपस्थित रहे. जितेन्द्र श्रीवास्तव द्वारा संपादित पुस्तक ‘शोर के विरुद्ध सृजन’- ममता कालिया का रचना संसार पर साहित्य-घर में परिचर्चा हुई. इस परिचर्चा में ममता कालिया ने अपनी लंबी और समृद्ध साहित्यिक-यात्रा के अनुभवों को श्रोताओं के साथ साझा किया. आईएएस श्याम सिंह के कविता-संग्रह ‘एक प्रतिध्वनि के लिए’ पर भी पुस्तक परिचर्चा हुई. इस परिचर्चा में श्याम सिंह के साथ जितेन्द्र श्रीवास्तव और कवयित्री-कहानीकार पूनम अरोड़ा ने शिरकत की. परिचर्चा के अंत में ओम निश्चल ने अत्यंत भाव-प्रवण तरीके से श्याम  की कविता ‘तेरे संग-संग चलती जाएं’ का सस्वर पाठ किया.