नई दिल्ली: एक्सीलेंस इन थिएटर अवार्ड्स एवं फेस्टिवल के तीसरे दिन भी दो नाटकों का मंचन हुआ. पहला नाटक मुंबई से सपन सरन द्वारा निर्देशित ‘बी-लव्ड: थिएटर, म्यूजिक, क्वीयरनेस, एंड इश्क!’ श्री राम सेंटर में प्रस्तुत किया गया. जबकि दूसरा नाटक मलयालम भाषा में ओटी शाजहां द्वारा निर्देशित ‘जीवंते मालाखा’ का मंचन कमानी सभागार में हुआ. ‘बी-लव्ड: थिएटर, म्यूजिक, क्वीयरनेस, एंड इश्क!’ नाटक मंच कला, संगीत, कविता और शारीरिक गतिविधियों के एक जीवंत मिश्रण के माध्यम से समलैंगिक प्रेम के बहुरूपदर्शक परिदृश्य की गहराई से खोज करता है. यह प्रस्तुति इतिहास और साहित्य के उन शक्तिशाली लेखों से प्रेरित है, जिन्होंने पीढ़ियों से एलजीबीटीक्यु+ व्यक्तियों के अनुभवों को आकार दिया है. इसमें समलैंगिक समुदाय द्वारा वर्तमान में अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए उपयोग किए जाने वाले गीतों, व्यंग्य, संगीतमय कथाओं और अन्य रचनात्मक कला रूपों का एक समृद्ध संग्रह भी शामिल है. यह नाटक दर्शकों को भारत के विभिन्न क्षेत्रों और विविध समुदायों में समलैंगिकता के जटिल और सूक्ष्म चित्रण में ले गया. इस मंचन में प्रसिद्ध समलैंगिक लेखकों की कृतियां शामिल हैं, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से हाशिए पर धकेले गए इन आवाजों को मुखर किया है. यह एक ऊर्जावान, गतिशील और मनमोहक प्रदर्शन है जो हास्य और मार्मिकता को सहजता से जोड़ता है, व्यक्तिगत और राजनीतिक मुद्दों को एक साथ बुनता है, और दर्शकों को प्यार, पहचान और स्वीकृति के विषयों पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है.

यह मंचन स्थापित करता है कि नाटक सिर्फ मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक घटना है जो समाज को दर्पण दिखाती है, रूढ़ियों को चुनौती देती है और सभी के लिए समानता और सम्मान की वकालत करती है. यह उन लोगों के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान करता है जो हाशिए पर महसूस करते हैं और उन्हें अपनी कहानियों को साझा करने और खुद को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है. इसी तरह ओटी शाजहां द्वारा निर्देशित ‘जीवंते मालाखा’ सैन्य शासन के साये में दबी घाटी की स्थितियों को बयान करता है. मानसिक रूप से कमजोर फ़ैसल अपनी बेटी दीया और मां फ़ातिमा के साथ जीवन यापन कर रहा है. उनकी शांत दुनिया तब बिखर जाती है जब फ़ैसल पर एक कर्नल की बेटी की हत्या का झूठा आरोप लगाया जाता है और उसे एक भयावह जेल में कैद कर दिया जाता है. यहां दोषियों और निर्दोष बंदियों के बीच फ़ैसल को जल्दी ही मौत की सज़ा सुना दी जाती है. शुरू में कैदियों द्वारा प्रताड़ित होने पर भी फ़ैसल धीरे-धीरे अपनी दयालुता और ईमानदारी से उनका सम्मान जीत लेता है. दीया के प्रति उसका अटूट प्रेम नाटक का भावनात्मक केंद्र बना रहता है, जबकि अन्य कैदियों की कहानियां समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं. यह नाटक सत्ता के दुरुपयोग, एक दोषपूर्ण न्याय प्रणाली और नैतिक द्वंद्व की गहराई में उतरता है. यह दर्शकों को वास्तविक जीवन की कठोरताओं से रूबरू कराता है और मानवीय भावनाओं को झकझोरता है, जिससे एक गहरा भावनात्मक प्रभाव उत्पन्न होता है.