नई दिल्ली: “लोकतंत्र सबसे पहले संसद में प्रतिबिम्बित होता है. संसद के बिना लोकतंत्र नहीं हो सकता. हम सबसे पुराने लोकतंत्र की जननी हैं, और इस समय सबसे जागरूक हैं. दुनिया के किसी भी देश में सभी स्तरों पर संवैधानिक रूप से संरचित लोकतंत्र नहीं है. लेकिन हमारे संविधान ने गांव स्तर पर, जिला स्तर पर, नगर निगम स्तर पर, राज्य स्तर पर और केंद्रीय स्तर पर लोकतंत्र का प्रावधान किया है. हम दुनिया में ऐसे एकमात्र देश हैं.” यह बात उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने डा केएस चौहान की पुस्तक ‘पार्लियामेंट: पावर्स, फंक्शन्स एंड प्रिविलेजेज; ए कम्पेरेटिव कान्स्टिट्यूशनल पर्सपेक्टिव’ के विमोचन के अवसर पर कही. उन्होंने कहा कि
संसद को अगर परिभाषित किया जाए, तो लोगों के प्रतिनिधित्व का यह सबसे संभावित मंच है. मैं सबसे संभावित इसलिए कह रहा हूं क्योंकि वोट देने की पात्रता में उम्र का कारक शामिल है और उस उम्र से कम वाले लोग खुद को प्रतिबिंबित करने के हकदार नहीं हैं. इसलिए यह बहुत आदर्शवादी नहीं है, लेकिन यह आदर्शवाद के काफी करीब है. इसलिए संसद लोगों की इच्छा को प्रतिबिंबित करती है. यह सबसे शुद्ध, पवित्र मंच है जहां लोगों के विचार मिलते हैं और कार्यपालिका का उदय होता है. कार्यपालिका संसद पर निर्भर है. इसे लोगों के सदन, संसद से अनुमोदित किया जाना चाहिए. और ऐसा होने पर, हमें सबसे पहले चुनावी प्रणाली पर ध्यान केंद्रित करना होगा. क्योंकि, अगर चुनावी प्रणाली दूषित है, तो संसद में प्रतिनिधित्व भी दूषित होगा. उपराष्ट्रपति ने कहा कि कार्यपालिका को संसदीय तंत्र के माध्यम से ही जवाबदेह ठहराया जाता है. इसके लिए क्या आवश्यक है? इसके लिए संसद को संवाद, बहस, चर्चा और विचार-विमर्श के माध्यम से काम करना होगा. लेकिन अगर संसद निष्क्रिय है, संसद तबाह हो गई है, व्यवधानों और रूकावटों से अपवित्र हो गई है, तो जवाबदेही नहीं बनती है.
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि संसद का प्राथमिक कार्य यह है कि वह क्रियाशील रहे, अधिकतम क्रियाशील रहे. इसमें संवाद और बहस होनी चाहिए. इसे सरकार को जवाबदेह बनाना चाहिए. दूसरा, संसद को लोगों की आकांक्षाओं को साकार करना चाहिए. उन भावनाओं को साकार किया जाना चाहिए. नीति विकास होना चाहिए. धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए एक कार्यशील संसद आवश्यक है, क्योंकि यह संसद ही है जो आपको अभिव्यक्ति की शक्ति देती है. मैं विशेषाधिकारों पर आता हूं. अभिव्यक्ति की एक ऐसी शक्ति जिस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता. आप संसद में जो कुछ भी कहते हैं, आप किसी भी अन्य चिंता से मुक्त होते हैं, आपको सिविल कोर्ट में नहीं ले जाया जा सकता, आप इसमें दोषी महसूस नहीं कर सकते. जब आपके पास वह सर्वोच्च अधिकार होता है, कि आप संसद में चाहे जो भी कहें, इस देश का कोई भी नागरिक, 1.4 अरब लोग अगर आहत होते हैं तो वे आपके खिलाफ कानून का सहारा नहीं ले सकते. यह संसद पर खुद एक भारी दायित्व डालता है. विशेषाधिकार भारी जिम्मेदारी के साथ आते हैं. उन्होंने कहा कि संसद में बोले गए हर शब्द, पेश किए गए हर दस्तावेज़ को प्रमाणित किया जाना चाहिए क्योंकि आपके विशेषाधिकार लाखों अन्य लोगों के विशेषाधिकारों को कुचलने के स्तर तक नहीं बढ़ सकते हैं, और इसलिए, संसद के सदस्यों को उदाहरण, आचरण, व्यवहार से दिखाना होगा, जिसका दूसरे अनुकरण कर सकें. उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि इतिहास के इस दौर में, इतिहास के इस मोड़ पर, सौभाग्य से हम सभी के लिए, भारत को वैश्विक शक्ति के रूप में मान्यता मिली है. यह सदी हमारी है. हम इसके असली हकदार हैं. हम सही रास्ते पर हैं. लेकिन अगर कुछ असंगत स्थितियां हैं, तो उन्हें ठीक करने का एकमात्र स्थान संसद है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह ऐसी किताब है जिसे शुरू से अंत तक नहीं पढ़ा जाना चाहिए. यह एक संदर्भ पुस्तक है जिसके दो खंड हैं.