रायपुर: ‘शास्त्रार्थ और वाद-विवाद की हमारी प्राचीन संस्थाएं दर्शाती हैं कि कैसे संरचित संवाद के माध्यम से गहरे मतभेदों को सुलझाया जाता था, जहां लक्ष्य जीत या हार नहीं था, बल्कि लक्ष्य सत्य और सामूहिक ज्ञान की खोज करना था.’  उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एनआईटी रायपुर, आईआईटी भिलाई और आईआईएम रायपुर के छात्रों और संकाय सदस्यों को संबोधित करते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा कि यही वह बात है जो राष्ट्र चाहता है. राष्ट्र सर्वसम्मति से, सभी की प्रतिबद्धता पर निर्मित होते हैं. उपराष्ट्रपति ने कहा कि आप जैसे युवा दिमागों के माध्यम से मैं शासन में बैठे लोगों से अपील करता हूं कि वे इस तरह काम करें कि आज का राजनीतिक विमर्श हमारी सभ्यतागत प्रकृति को पुनर्जीवित करे जहां आम सहमति बौद्धिक आदान-प्रदान से उभरती है, टकराव से नहीं. हमारे राजनीतिक संवादों को पक्षपात से ऊपर उठकर स्वार्थ, राजनीतिक हित नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हितों की सेवा करनी चाहिए. उपराष्ट्रपति ने कहा कि संविधान निर्माता बहुत बुद्धिमान और संविधान पर केंद्रित थे. उन्होंने हमें कुछ बुनियादी बातें बताईं, लेकिन उन्होंने संकेत दिया कि जैसे-जैसे लोकतंत्र परिपक्व होता है, जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, हमें अपने लोगों के लिए कुछ लक्ष्य भी हासिल करने चाहिए, उनमें से एक है समान नागरिक संहिता.

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि हमने कुछ हासिल किए हैं, जैसे शिक्षा का अधिकार, और इसलिए राष्ट्रीय कल्याण के अलावा किसी और चीज को हमारी प्रतिक्रिया का मार्गदर्शन नहीं करना चाहिए.  उपराष्ट्रपति ने युवाओं से हमेशा राष्ट्र को सर्वोपरि रखने का संकल्प लेने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि हम सभी को अपनी सदियों पुरानी एकीकृत भावना वसुधैव कुटुम्बकम को पुनर्जीवित करने और पोषित करने की शपथ लेनी चाहिए, जो सहस्राब्दियों, 5000 वर्षों से हमारी सभ्यता का सार रही है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि स्वदेशी हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक मार्मिक शब्द था, इसे प्रधानमंत्री ने एक नया आयाम दिया है, स्थानीय के लिए मुखर हो लेकिन स्वदेशी का क्या मतलब है? उपराष्ट्रपति ने कहा कि यदि आप अनावश्यक रूप से आयातित वस्तुओं का उपयोग करते हैं, तो मैं थोड़ी देर बाद इस पर आऊंगा, इसके परिणाम क्या होंगे. स्वदेशी में विश्वास रखें. सामाजिक समरसता, सामाजिक सद्भाव, यह एक महान एकीकृत शक्ति है. हर व्यक्ति इसमें योगदान दे सकता है, उसे आगे आना चाहिए. सामाजिक वैमनस्य क्यों होना चाहिए? और नागरिक कर्तव्य. उपराष्ट्रपति ने आग्रह किया कि संविधान में जो मौलिक कर्तव्य हैं, उन्हें अवश्य पढ़ें. आप पाएंगे कि उन्हें निभाना बहुत आसान है, उन्हें पढ़ने मात्र से ही आप जागरूक हो जाएंगे. अरे, मैंने अब तक ऐसा क्यों नहीं किया! इससे मुझे मदद मिलती है, इससे मेरे पड़ोसी को मदद मिलती है, इससे मेरे मित्र को मदद मिलती है, इससे समाज को मदद मिलती है, इससे देश को मदद मिलती है. ये केवल सिद्धांत नहीं हैं, बल्कि ये किसी राष्ट्र को महान बनाने के लिए आवश्यक हैं.