दीपक की तरह जीवन को रोशन करते हैं शैलेंद्र के गीत

संवादी : छठा सत्र 

प्रभात रंजन, जागरण 

पटना : बिहार संवादी का छठा सत्र संगीत के नाम रहा। शैलेंद्र के गीतों के बहाने उनकी जिंदगी में झांकने की जद्दोजहद, इरशाद कामिल की शायरी, गीतों और नज्मों पर संवाद का सिलसिला बढ़ता रहा। शैलेंद्र के गीत दीपक की तरह जीवन को रोशन करते रहे हैं। रेणु की रचना मारे गए गुलफाम पर बनी फिल्म तीसरी कसम से लेकर अवध, भोजपुरी, हिंदी, अंग्रेजी में शैलेंद्र के गीतों के साथ बिहार संवादी कार्यक्रम का आखिरी सत्र अपने समापन तक श्रोताओं को बांधे रहा।

शैलेंद्र स्मरण पर बातचीत के दौरान मंच पर संगीत मर्मज्ञ व लेखक यतींद्र मिश्र, रेडियो उद्धोषक व लेखक युनूस खान के बीच संवाद शैलेंद्र की जीवन यात्रा को शब्दों व गीतों में बयां करते रहे। शब्दों के जादूगर शैलेंद्र पर बातचीत हुई तो अतिथि वक्ता यतींद्र जवाब देते हैं कि भावनाओं और शब्दों में पिरोकर गीत को बल देने वाले शैलेंद्र का फन कुछ और ही था। वे अपने जीवन के संघर्षों को हर गीत में समाहित करते रहे। जीवन में जब ठोकर खाए तो शैलेंद्र ने अपनी भावनाओं को दुनिया के सामने रखा।

शैलेंद्र के गीत जिंदगी का पाठ : 

शैलेंद्र के गीत सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि जिंदगी का पाठ हैं। समय के साथ उन्होंने अपने आप को जोड़े रखा। सजन रे झूठ मत बोलो… हर दिल जो प्यार करेगा… किसी की मुस्कुराहटों पे… दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई… समेत सैकड़ों सदाबहार गीत लिखने वाले शैलेंद्र मार्क्सवाद व इप्टा से जुड़े रहे। इसके बावजूद वे विभिन्न विषयों पर लिखते रहे। उनके गीतों में आम अवाम के दुख-दर्द की बात है तो उन्होंने निर्गुण गीतों को भी स्थान दिया। उम्मीद से परे गीतकार शैलेंद्र ने भोजपुरी फिल्म में गंगा मैया तोहरे पियरी चढ़इबो… के जरिए संगीत को नया आयाम दिया। यतींद्र ने भोजपुरी फिल्मों पर कहा कि 22 फरवरी 1963 को पटना के वीणा सिनेमा में भोजपुरी फिल्म प्रदर्शित की गई थी। फिल्म के गीत हे गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो, संइया से करि दे मिलनवा हाय राम… गीत के जरिए उन्होंने लोक संगीत को समृद्ध किया। समाज के शोषित तत्वों का दर्शन भी है। राजकपूर के बैनर से बाहर निकलने के बाद शैलेंद्र पूर्ण रूप से स्वतंत्र हुए तो उन्होंने स्त्री मन के गीत भी लिखे। स्त्री मन को कुरेदते गीत अजीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहां खतम, ये मंजिलें हैं कौन सी, न वो समझ सके न हम… आज भी लोगों के दिलों में सीधे उतर जाती है। गीतों की प्रासंगिकता ऐसी है कि इसे जरूरत है पाठ्य-पुस्तकों में शामिल करने की। शैलेंद्र के जीवन से जुड़ी कहानियों को सुनने को लेकर सभागार में बैठे कला प्रेमी उत्सुक दिखे। संवाद का सिलसिला आगे बढ़ता रहा। इसी क्रम में बात आई शैलेंद्र द्वारा फिल्म निर्माण को लेकर तो यतींद्र ने कहा कि रेणु की रचना मारे गए गुलफाम पर फिल्म बनाने को लेकर सब कुछ खोना पड़ा। फिल्म निर्माण को लेकर शैलेंद्र की पत्नी के गहने भी गिरवी रखने पड़े,उन्हें लोगों से उपहार में धोखे मिले। इसके बावजूद फिल्म बन कर तैयार हुई। फिल्म में शैलेंद्र ने तीसरी कसम का मजाकिया और बेतकल्लुफ नजर आने वाला धमाल गीत पिंजरे वाली मुनिया…लोकगीत का प्रयोग किया। संकेत यह है कि नारी इतनी आकर्षक होती है और पुरुष अनादि से उसके रूप और यौवन का गुदिया रसिया होता है कि मुनिया उसे आसानी से ढेर कर देती है। वे कथा की आत्मा में उतर कर गीत लिखे थे। नौटंकी वाली बाई को संकेत द्वारा पिंजरे की मुनिया बताकर और गाड़ीवान हीरामन को उसी संकेत के द्वारा चलत मुसाफिर जताकर उन्होंने एक साथ कथा के व्यंग्य और कारुणय को उभारा था। बातचीत के क्रम में शैलेंद्र के गीतों पर संजना सिन्हा, आशीष सिन्हा ने गीतों की प्रस्तुति के साथ श्रोताओं को आनंदित करने के साथ कार्यक्रम में बांधे रखा। सभागार में बैठे श्रोताओं ने शैलेंद्र के बारे में जानकारी प्राप्त करने के साथ ऐसे आयोजन को लेकर बधाई दी।