नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने वयोवृद्ध साहित्यकार प्रो रामदरश मिश्र की जन्मशती के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन कियाजिसका उद्घाटन ज्ञानपीठ से सम्मानित गुजराती के प्रख्यात लेखक और साहित्य अकादेमी के महत्तर सदस्य रघुवीर चौधरी ने किया. अकादेमी के सचिव डा के श्रीनिवासराव ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि रामदरश मिश्र ने साहित्य की सभी विधाओं में महत्त्वपूर्ण लेखन किया है. वे हिंदी के पहले ऐसे लेखक हैंजिनकी उपस्थिति में उनकी जन्मशती मनाई जा रही है. पिछले 25 साल में किसी हिंदी लेखक को यह सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि मैथिली और पंजाबी भाषा में लेखकों की जन्मशती उनके जीते-जी मनाई गई थी. हिंदी में यह सौभाग्य केवल रामदरश मिश्र को मिला है. उनके लेखन और व्यक्तित्व में कोई अंतर नहीं रहा है. वह सहजसरल और मानवीय गुणों से भरे लेखक हैं. रघुवीर चौधरी ने गुजरात में रामदरश मिश्र के साथ बिताए गए वर्षों का जिक्र करते हुए कहा कि जब वे बीए में पढ़ते थे तब से मिश्रजी की रचनाओं से परिचित थे. उन्हें गुजराती के प्रसिद्ध लेखक भोलाभाई पटेल ने मिश्र के साहित्य से परिचय कराया था और तब से उनसे मेरा आत्मीय स्तर पर व्यक्तिगत और रचना के स्तर पर संबंध बना हुआ है. चौधरी ने कहा कि रामदरश मिश्र की एक कविता स्कूली पाठ्यक्रम में लगी थी. उन्होंने चार बड़े उपन्यास लिखे और अनेक लघु उपन्यास लेकिन मुझे ‘अपने लोग‘ उपन्यास अधिक पसंद है. मिश्र मूलतः गीतकार हैं. वे अपनी कविताओं को गाते भी थे. वे एक शास्त्रीय गायक की तरह बहुत सुंदर कजरी गाते थे. प्रकाश मनु ने इस समारोह को आनंदोत्सव-महोत्सव बताते हुए कहा कि उन्होंने प्रेमचंद को तो नहीं देखा पर रामदरश मिश्र के भीतर प्रेमचंद को देखा है. उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रेमचंद को पुनर्नवा किया है.

कार्यक्रम में उपस्थित डा रामदरश मिश्र ने कहा कि वह कभी महत्वाकांक्षी नहीं रहे और जीवन में क्या मिलानहीं मिला इसकी शिकायत नहीं की. लेकिन जीवन के चौथे चरण में साहित्य अकादेमी ने उन्हें बहुत सम्मान दिया और हिंदी जगत ने भी बहुत मान दिया. चाहे सरस्वती सम्मान हो या व्यास सम्मान और अब कबीर सम्मान. उनके परिवार ने भी उन्हें बहुत प्यार दिया है. मिश्र ने बनारस में हजारीप्रसाद द्विवेदी के प्रिय शिष्य के रूप में बिताए गए समय को भी याद किया. उन्होंने समारोह में अपनी कुछ कवितागजलगीत और मुक्तक भी सुनाए. अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि मिश्र जी बनारस गएगुजरात गएदिल्ली आए पर वे अपने गांव को लेकर साथ चलते रहे. उन्होंने गांव के संस्कार नहीं छोड़े. दिल्ली में भी अपने गांव को लिए बैठे रहे. इसलिए मनुष्यता को बचाये रखे और उनके व्यक्तित्व में सहजतासरलताआत्मीयता है. शर्मा ने कहा कि जब वह ‘साहित्य अमृत‘ का संपादन करती थीं तो हिंदी के लेखक 25 बार फोन करने पर रचना भेजते थे लेकिन मिश्रजी एक बार मे ही रचना भेज देते थे. उन्होंने बताया कि रामदरश मिश्र मूलतः कवि हैं और उन्होंने छायावाद से लेकर प्रगतिशीलप्रयोगवादनई कविता तथा सभी काव्य आंदोलनों को देखा इसलिए उनकी कविता का व्यापक फलक है. उनकी कविता में केवल रुमानियत नहीं है बल्कि उन्होंने वस्तु रूप को भी पकड़ा है और आज का यथार्थ भी व्यक्त हुआ है. उनकी रचनाओं में बाजार और भूमंडलीकरण के दुष्प्रभावों का विरोध भी दिखता है. डा मिश्र के पद्य साहित्य पर केंद्रित प्रथम सत्र की अध्यक्षता बाल स्वरूप राही ने की और प्रो मिश्र की पुत्री स्मिता मिश्र एवं ओम निश्चल ने अपने आलेख प्रस्तुत किए. द्वितीय सत्र रामदरश मिश्र के गद्य साहित्य पर केंद्रित थाजिसकी अध्यक्षता प्रख्यात लेखक और शिक्षाविद गिरीश्वर मिश्र ने की. इस सत्र में अलका सिन्हावेदमित्र शुक्ल और वेदप्रकाश अमिताभ ने आलेख-पाठ किया. कार्यक्रम में रामदरश मिश्र के पूरे परिवार के साथ ही उनके अनेक शिष्यलेखककालेज के विद्यार्थी और पत्रकार उपस्थित थे.