सिकंदराबाद: रक्षा प्रबंधन महाविद्यालय सिकंदराबाद ने ‘सैन्य रणनीतिक प्रमाणिक नेताओं का विकास: अवधारणाओं और रणनीतियों की पुनःकल्पना’ विषय पर वार्षिक राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया, जिसमें वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों, रणनीतिक विशेषज्ञों और अग्रणी शिक्षाविदों को आधुनिक युद्ध में नेतृत्व के उभरते ढांचे का पता लगाने के लिए एक साथ लाया गया. चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने भाषण दिया, जिसमें विघटनकारी प्रौद्योगिकियों और जटिल भू-राजनीतिक बदलावों के युग में अनुकूली नेतृत्व की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर जोर दिया गया. सेमिनार का मुख्य आकर्षण ‘सैन्य रणनीतिक और प्रमाणिक नेताओं के विकास के लिए रणनीति’ पर सत्र था, जहां वाइस एडमिरल बिस्वजीत दासगुप्ता और लेफ्टिनेंट जनरल अजय चांदपुरिया ने विघटनकारी प्रौद्योगिकियों के प्रभाव, भू-राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव और रणनीतिक सैन्य नेतृत्व की उभरती भूमिका पर चर्चा की.
सेमिनार में नेतृत्व विकास, प्रचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली से सबक और एकीकृत, क्रास-सर्विस नेतृत्व के लिए आवश्यक योग्यताओं सहित विषयों पर विभिन्न शिक्षाविदों द्वारा चर्चा की गई. वरिष्ठ दिग्गजों ने आधुनिक सैन्य चुनौतियों और भविष्य के लिए तैयार सशस्त्र बलों को आकार देने के लिए आवश्यक नेतृत्व माडल पर महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान की. कमांडेंट सीडीएम मेजर जनरल हर्ष छिब्बर ने बढ़ते वैश्विक संघर्षों, घटते नियंत्रण तंत्र और सशस्त्र बलों की सामाजिक-आर्थिक विविधता के मद्देनजर सैन्य नेतृत्व रणनीतियों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता को रेखांकित किया. सेमिनार में सैन्य नेतृत्व को राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के साथ जोड़ने, सशस्त्र बलों के भीतर तकनीकी प्रगति और संरचनात्मक सुधारों का लाभ उठाने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया. सेमिनार ने सैन्य नेतृत्व को आकार देने वाली संरचनाओं, अवधारणाओं और रणनीतियों पर गहराई से विचार करने के लिए एक साझा मंच प्रदान किया और सैद्धांतिक रूपरेखाओं का पता लगाया और साथ ही सैन्य संदर्भ में वास्तविक दुनिया के अनुभवों की जांच की. दिसंबर 1970 में स्थापित रक्षा प्रबंधन महाविद्यालय एक प्रमुख त्रि-सेवा संस्थान है जो वरिष्ठ सैन्य नेतृत्व को समकालीन प्रबंधन विचार, अवधारणाओं और सर्वोत्तम प्रथाओं से लैस करने के लिए समर्पित है. पिछले कुछ वर्षों में इसके राष्ट्रीय सेमिनारों ने रणनीतिक चुनौतियों और आत्मनिर्भरता से लेकर भू-राजनीतिक सत्ता परिवर्तन और नेतृत्व परिवर्तन तक के महत्त्वपूर्ण विषयों को संबोधित किया है, जिससे भारत के सैन्य भविष्य को आकार देने में सीडीएम की भूमिका मजबूत हुई है.