मुंबई: “हमारा भारत एक असाधारण और अद्भुत भूमि है. भारत केवल भौगोलिक सीमाओं में बंधा भूमि का एक टुकड़ा मात्र नहीं है. भारत एक जीवंत धरती है, एक जीवंत संस्कृति है, जीवंत परंपरा है. और, इस संस्कृति की चेतना है- यहां का अध्यात्म! इसलिए, यदि भारत को समझना है, तो हमें पहले अध्यात्म को आत्मसात करना होता है.” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नवी मुंबई में इस्कान के श्री राधा मदनमोहनजी मंदिर के उद्घाटन अवसर पर यह बात कही. उन्होंने कहा कि जो लोग दुनिया को केवल भौतिक दृष्टि से देखते हैं, उन्हें भारत भी अलग-अलग भाषा और प्रांतों का समूह नजर आता है. लेकिन, जब आप इस सांस्कृतिक चेतना से अपनी आत्मा को जोड़ते हैं, तब आपको भारत के विराट रूप के दर्शन होते हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि तब आप देख पाते हैं, सुदूर पूरब में बंगाल की धरती पर चैतन्य महाप्रभु जैसे संत अवतरित होते हैं. पश्चिम में महाराष्ट्र में संत नामदेव, तुकाराम, और ज्ञानदेव जैसे संतों का अवतरण होता है. चैतन्य महाप्रभु ने महावाक्य मंत्र जन-जन तक पहुंचाया. महाराष्ट्र के संतों ने ‘रामकृष्ण हरी’, रामकृष्ण हरी के मंत्र से आध्यात्मिक अमृत बांटा. संत ज्ञानेश्वर ने ज्ञानेश्वरी गीता के जरिए भगवान कृष्ण के गूढ ज्ञान को जनसुलभ बनाया. इसी तरह, श्रील प्रभुपाद जी ने इस्कान के माध्यम से गीता को लोकप्रिय बनाया. गीता की टीकाएं प्रकाशित कर उसकी भावना से लोगों को जोड़ा.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अलग-अलग स्थानों पर जन्मे ये सभी संत अपने-अपने तरीके से कृष्ण भक्ति की धारा को गति देते रहे हैं. इन संतों के जन्मकाल में वर्षों का अंतर है, अलग-अलग भाषा, अलग-अलग पद्धति है, लेकिन, बोध एक है, विचार एक है, चेतना एक है. प्रधानमंत्री ने कहा कि सभी ने भक्ति के प्रकाश से समाज में नए प्राण फूंके, उसे नई दिशा दी, अविरत ऊर्जा दी. हमारी आध्यात्मिक संस्कृति की नींव का प्रमुख आधार सेवा भाव है. आध्यात्मिकता में जनार्दन-सेवा और जन-सेवा, एक हो जाते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारी आध्यात्मिक संस्कृति साधकों को समाज से जोड़ती है, उनमें करुणा की भावना पैदा करती है. ये भक्ति-भाव उन्हें सेवा-भाव की ओर ले जाता है. “दातव्यम् इति यत् दानम दीयते अनुपकारिणे देशे काले च पात्रे च तत् दानं सात्त्विकं स्मृतम्…” प्रधानमंत्री ने कहा कि श्री कृष्ण ने हमें इस श्लोक में सच्ची सेवा का मतलब बताया है. उन्होंने बहुत सुंदर तरीके से समझाया है कि सच्ची सेवा वही है, जिसमें आपका कोई स्वार्थ न हो. हमारे सभी धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों के मूल में भी सेवा भावना है. इस्कान जैसी इतनी विराट संस्था भी, इसी सेवा भावना से काम करती है. शिक्षा, स्वास्थ्य, और पर्यावरण से जुड़े कितने ही काम आपके प्रयासों से होते हैं. कुम्भ में इस्कान सेवा कई बड़े कार्य कर रहा है. इस अवसर पर महाराष्ट्र के गवर्नर सीपी राधाकृष्णन, मुख्यमंत्री देवा भाऊ, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, गुरु प्रसाद स्वामी, हेमा मालिनी सहित बड़ी संख्या में सम्मानित अतिथि, भक्तगण उपस्थित थे.